शनिवार, 30 सितंबर 2017

आदिमानव: अफ्रीका से भारत एवं एशिया में प्रसार

अभी तक की जानकारी के अनुसार संपूर्ण ब्रह्मांड में हमारी पृथ्वी एक अद्वितीय ग्रह है। अद्वितीय, क्योंकि सिर्फ इसी ग्रह पर मनुष्य का आवास है। यह लगभग 4.8 अरब वर्ष पुरानी है। पृथ्वी पर प्रथम जीव की उत्पत्ति आज से लगभग 35 अरब वर्ष पहले हुई थी। पृथ्वी की उत्पत्ति के संदर्भ में कई परिकल्पनाएं दी गई। इनमें बिग बैंग संकल्पना तथा जेम्स जींस की द्वितारक परिकल्पनाएं महत्वपूर्ण है। जेम्स जींस की संकल्पना के अनुसार सूर्य के साथ ही प्रारंभ में एक साथी तारा भी था, जो एक पृथक कक्षा में सूर्य की ओर बढ़ रहा था जिसके गुरुत्वाकर्षण बल के प्रभाव से सूर्य में सिगारनुमा एक ज्वार उभरा। जब यह तारा सूर्य के अत्यंत समीप से गुजरा तो सूर्य पर लगने वाला इसका गुरुत्वाकर्षण बल इतना अधिक था कि सूर्य में उभरा ज्वार उससे अलग हो गया। यह ज्वार, सूर्य के गुरुत्वाकर्षण बल के प्रभाव में उसके चारों ओर घूमने लगा तथा कालांतर में संकुचन एवं शीतलन के कारण यह सिगारनुमा ज्वार लगभग 9 भागों में टूट गया। इस प्रकार पृथ्वी सहित नौ ग्रहों का निर्माण हुआ। यद्यपि इस संकल्पना पर कई प्रश्न चिन्ह है लेकिन उनसे हमारा यहां कोई सरोकार नहीं है। महत्वपूर्ण यह है कि प्रारंभ में पृथ्वी आग का एक विशाल गोला थी जिसे ठंडा होने में लाखों वर्ष लग गए। पृथ्वी के शीतल होने, महाद्वीपों तथा महासागरों की उत्पत्ति होने तथा इसपर प्रथम जीव की उत्पत्ति होने में अतिरिक्त लाखों वर्ष और लग गए। भूवैज्ञानिक पृथ्वी पर जीवन के विकास के इतिहास को चार अवस्थाओं में बांटते हैं:
* प्राथमिक यानी पेलियोजोइक
* द्वितीयक अर्थात मेसोजोइक
* तृतीय एवं चतुर्थ
इनमें से तृतीयक तथा चतुर्थक, नूतनजीव अवस्था (सिनोजोइक) का निर्माण करते हैं। यह लगभग 8 करोड़ वर्ष पूर्व प्रारंभ हुआ।
सिनोजोइक अर्थात नूतन जीव महाकल्प 7 युगों में विभाजित किया जाता है। जिनमें से बाद के दो अत्यंतनूतन(प्लीस्टोसीन) तथा नूतनतम (होलोसीन) मानव विकास की दृष्टि से सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। अत्यंत नूतन लगभग 30 लाख वर्ष पूर्व तथा नूतनतम(होलोसीन) (आधुनिक युग जिसमें हम रहते हैं) आज से लगभग 10,000 वर्ष पूर्व प्रारंभ हुआ माना जाता है।
पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति करोड़ों वर्षों तक पौधों और पशुओं तक सीमित रही। पृथ्वी पर मानव की उत्पत्ति प्लीस्टोसीन  काल में हुई। लगभग 3.5 से 2 करोड़ वर्ष पूर्व छोटे कद का एक कपि समूह उष्ण कटिबंध के घने जंगलों से बाहर निकला। पहले यह वृक्षों पर ही रहता था। संभवत कपि समूह के जंगल से बाहर निकलने के पीछे जंगल में उनकी जनसंख्या वृद्धि तथा उनके मध्य आपसी संघर्ष एक कारण रहा हो। जलवायु परिवर्तन के कारण जंगलों का क्षेत्रफल भी कम हो रहा था। अतः जलवायु परिवर्तन भी कपि समूह के जंगल से निष्क्रमण का एक उचित कारण हो सकता है।
इस निष्क्रमण के पश्चात क्योंकि यह कपि समूह खुले जंगल में रहने लगा। अतः यह एक स्वभावगत बदलाव प्रक्रिया से गुजरा। अब उसने वृक्षों की बजाय नदियों, पोखरों के किनारे तथा गुफा एवं कंदराओं में रहने को वरीयता दी। नए आवास की परिस्थितियों ने ऐतिहासिक बदलाव को जन्म दिया। यह बदलाव था:-
*  हाथों की चालन क्रिया से मुक्ति
* पैरों पर खड़े हो कर, झुक कर चलना
* हाथों की मुक्ति के कारण मस्तिष्क को हाथ की सहायता प्राप्त हुई, जिसने तकनीकी विकास का मार्ग प्रशस्त किया। अब वह हाथों से तकनीकी क्रिया जैसे उपकरण प्रयोग, फल तोड़ना, भोजन करना आदि कार्य करने लगा। यह एक ऐसा परिवर्तन था जिसने क्रमशः आधुनिक विकसित सभ्यता की नींव रख दी। जंगल से बाहर निकलकर मैदानों में घूमने वाला समूह आस्ट्रेलोपिथेकस कहलाया, जो पूर्व-अत्यंतनूतन युग में अस्तित्व में आया था। आस्ट्रेलोपिथेकस का शाब्दिक अर्थ है दक्षिण वानर। इसका उद्भव मानव इतिहास की अत्यंत महत्वपूर्ण घटना है। इसमें मनुष्य एवं वानर दोनों के लक्षण उपस्थित थे। इसके मस्तिष्क का औसत आकार 450 घन सेंटीमीटर था तथा लंबाई 40 से 50 इंच तक थी। यह मुड़ी हुई पीठ के साथ सीधा चलता था। इसकी खोपड़ी बहुत कुछ मानव समान थी परंतु चेहरा थूथनदार था। इसका उद्भव लगभग 5500000 वर्ष पूर्व से लेकर 1500000 वर्ष पूर्व हुआ था। यह दो पैरों से चलने वाला तथा उभरे पेट वाला था। यह सबसे अंतिम होमिनिड अर्थात पूर्व मानव था। 20 से 15 लाख वर्ष पूर्व दक्षिण अफ्रीका में होमोहैबिलस अर्थात हाथ वाला मानव (कारीगर मानव) अस्तित्व में आया।
इसे प्रथम मानव की कहते हैं।सर्वप्रथम इसी ने पत्थरों को टुकड़ों में तोड़ कर, टकराकर उनका औजार के रूप में प्रयोग किया। यही प्रथम वास्तविक मानव था इसकी मस्तिष्क क्षमता 500 से 700 घन सेंटीमीटर थी।
पिथेकोन्थरेपस अर्थात होमो इरेक्टस का अर्थ है सीधा चलने वाला कपि मानव। उनकी दृष्टि क्षमता अत्यंत तीव्र होती थी। मस्तिष्क क्षमता 770 घन सेंटीमीटर से 1300 घन सेंटीमीटर थी। यह सीधा खड़ा हो कर चलता था। इसने अत्यंत लंबी दूरी की यात्राएं की। यह अफ्रिका के उष्णकटिबंधीय घास के मैदानों से लेकर चीन की समशीतोष्ण क्षेत्रों तक पाया जाता था। यह प्रजाति 1500000 वर्ष पूर्व से लेकर 75000 वर्ष के बीच अस्तित्व मे थी। पत्थर के हस्तकुठार
(हैंडएक्स) के निर्माण तथा अग्नि के आविष्कार का श्रेय होमो इरेक्टस को ही है। मानव पूर्वजों में निएंडरथल प्रथम प्राणी था जिसने हिमाच्छादित क्षेत्रों पर भी विजय पाई और वह समशीतोष्ण क्षेत्रों में दूर-दूर तक पहुंच गया। इसकी मस्तिष्क क्षमता आधुनिक मानव के लगभग समान थी। यह गर्दन झुका कर सीधा चलता था। आधुनिक प्रज्ञ मानव का विकास होमो सेपियंस से हुआ। जिसकी जर्मनी में प्राप्त निअंडरथल से पर्याप्त समानताएं हैं। इसका काल 230000 से 30000 वर्ष पूर्व निर्धारित किया जाता है। आंतरिक विसमांगता के आधार पर इस काल में तीन बड़ी बड़ी मानव प्रजातियों का पूर्व संकेत प्राप्त होता है। यह है काकेशशि, मंगोलॉयड एवं नीग्रोयड।



विश्वभर में प्राचीन काल के पत्थर के औजारों में व्यापक समानताओं के अध्ययन के आधार पर कुछ इतिहासकारों का मत है कि होमोइरेक्टस का मूल स्थान अफ्रीका ही था। वह अपने मूल स्थान से निकलकर विश्व के अन्य भागों में फैल गया। बाद में वहां जाकर वह विभिन्न स्थानीय प्रजातियों के रूप में विकसित हुआ। जैसे जावा मानव, पिथेकोन्थ्रेपस,पीकिंग मानव, यूरोप का निएंडरथल आदि। लेकिन कुछ इतिहासकारों का मत है कि अफ्रिका से मानव के फैलाव और विसरण का स्वभाव एवं कारण स्पष्ट नहीं है। प्रज्ञ-मानव इतना अधिक संपन्न होता है कि वह समान पारिस्थितिकीय दशाओं में समान संस्कृति (औजार एवं हथियार) विकसित कर सकता है। इस हेतु किसी बाहरी प्रभाव की आवश्यकता नहीं होती है। यह विषय अभी वाद-विवाद का विषय बना हुआ है। दिसंबर 2009 में हुआ एक अध्ययन दर्शाता है कि चीन, जापान एवं सुदूर पूर्व एशियाई देशों की आबादी के पूर्वज भारत से गए थे। भारत सहित 10 देशों चीन, जापान, इंडोनेशिया, मलेशिया, फिलीपींस, सिंगापुर, साउथ कोरिया, ताइवान एवं थाईलैंड के लगभग 90 वैज्ञानिकों ने एक अध्ययन किया। इसके अनुसार जापानी चीनी एवं बाकी सभी पूर्वी एशियाई देशों के पूर्वज भारतीय थे। इन सभी की उत्पत्ति का मूल एक है। अतः स्पष्ट है कि भारत एशिया की जेनेटिक विविधता के छोटे रूप का प्रतिनिधित्व करता है। इस अध्ययन के अनुसार भारत से लोग दक्षिण-पूर्व एशिया और पूर्वी एशिया गए। लगभग 100000 वर्ष पूर्व दक्षिण अफ्रीका से सिर्फ एक समूह भारत आया। उसने भारत में सबसे पहले भू भाग पर कदम रखा, लेकिन तटीय क्षेत्रों के करीब। यह लोग जल्दी ही दक्षिण भारत में फैल गए  फिर वें दक्षिण पूर्व और पूर्वी एशियाई क्षेत्र में पहुंच गए। इन भारतीयों और उनके जेनेटिक बदलाव के विविध रूप धीरे-धीरे एशिया के दूसरे हिस्सों में पसरते चले गए। अर्थात यह कहा जा सकता है कि भारतीय ही एशियाई लोगों के पुरखे हैं।

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