शुक्रवार, 15 सितंबर 2017

अधिशेष कृषि उत्पादन एवं हड़प्पा मे नगरीकरण

अधिशेष  कृषि उत्पादन एवं हड़प्पा में नगरीकरण
                                        @सुनील सत्यम
हड़प्पा के ग्रामीण क्षेत्रों से द्विमार्गी प्रक्रिया के माध्यम से, अधिशेष खाध्यान्न उत्पादन नगरों में स्थानांतरित हो जाता था। वास्तव में इन नगर केन्द्रों का पहले हाट बाज़ारों के रूप में उदय हुआ होगा, जिन्होने विकसित होकर नगरों का रूप ले लिया। ग्रामीण क्षेत्रों से नगरीय क्षेत्रों में पहुंचे इस अधिशेष कृषि उत्पादन के बलबूते नगरीय व्यापार फला-फूला और यहाँ के व्यापारी समृद्ध होते चले गए। उनका जीवन विलासितापूर्ण होता चला गया। विलासितापूर्ण जीवन की चाह एवं विलासिता की वस्तुओं ने कुछ व्यापारियों को व्यापार की एक नई विधा अपनाने के लिए प्रेरित किया होगा। इन व्यापारियों ने कीमती धातुओं एवं बहुमूल्य पत्थरों, क्षृंगार सामाग्री,आदि का व्यापार करना प्रारम्भ कर दिया। वांछित वस्तुओं की खोज में ये व्यापारी लंबी दूरी के व्यापार में संलल्ग्न हो गए। इस प्रकार अंतर्राज्यीय एवं अंतर्राष्ट्रीय व्यापार प्रारम्भ हो गया । हड़प्पा के व्यापारी मिश्र,मेसोपोटामिया,मकन तथा दिलमुन तक आगे बढ़ गए। नगरीय व्यापारियों के पास भारी मात्रा में अधिशेष उत्पादन जमा हो जाता था। सुरक्षा एवं प्रशासन संबंधी आवश्यकताओं ने नगरीय शासक वर्ग को जन्म दिया तथा इस प्रकार नगर पंचायतों अथवा नगर-पालिकाओं का विकास हुआ। नगर प्रमुख, नगर वासियों से, उनको प्रदत्त सुविधाओं जैसे सुरक्षा, सफाई,सड़क निर्माण के बदले अंशदान,कर एवं नजराना प्राप्त करते थे। यह निश्चित ही अन्न के रूप में होता था, क्योंकि हड़प्पा निवासियों द्वारा अभी तक किसी व्यवस्थित मुद्रा प्रणाली के अस्तित्व के साक्ष्य प्राप्त नही हुए हैं। इस प्रकार कर आदि के रूप में संग्रहीत इस अन्न को को विशाल अन्नागारों में सुरक्षित रखा जाता था। नगर निवासी समान्यतः शिल्पी तथा व्यापारी होते थे जो अपने बीच से ही किसी अज्ञात विधि द्वारा नगर प्रमुख
एवं अन्य सहायक अधिकारी वीआरजी का चुनाव करते थे। शायद उसी प्रकार जैसे चोल काल में। इस प्रकार निर्मित येँ नगर-पालिकाएं नगरों के सुचारु संचालन हेतु नियम-विनियम  बनाती थी। नगरपालिका का सर्वप्रमुख कार्य था नगर-नियोजन  तथा सुरक्षा। आपातकाल जैसे सूखा एवं अकाल में राहत सामाग्री के रूप में नगरवासियों में अनाज वितरण का कार्य भी नगरपालिकाएं करती रही होंगी। नगर प्रमुख अथवा नगर शासक स्वयं भी व्यापारी रहे होंगे क्योंकि वे स्वयं व्यापारियों से बीच से ही चुने जाते थे। नगरपालिकाओं का उदय नगरवासियों की सामूहिक आवश्यकताओं के परिणामस्वरूप ही हुआ था। ये आवश्यकताएँ निम्नलिखित थी:-
·        नगरों का सुचारु रूप से संचालन एवं प्रबंधन
·      *  व्यापार प्रबंधन
·      *  सुरक्षा
1-  जंगली जानवरों से
2-  ग्रामीणों/चोर-लुटेरों से
इन नगरपालिकाओं ने हड़प्पाई नगर-नियोजन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। नगरों की स्थापना के समय से ही संभवतः ये नगरपालिकाएँ सक्रिय रहती थी। इसी के परिणामस्वरूप दुनिया की प्रथम नगरीय सभ्यता अस्तित्व में आई। सड़कें चौड़ी तथा एक दूसरे को समकोण चौराहों पर काटती थी। जल निकास की उत्तम व्यवस्था तथा नगरों का समान्यतः शतरंजी प्रतिरूप, इन नगरपालिकाओं द्वारा निर्मित विनियमों द्वारा ही संभव हो पाया। विभिन्न नगरों के नियोजन में समानता के आधार पर यह तर्क नही दिया जा सकता है कि सम्पूर्ण हड़प्पाई क्षेत्र किसी केंद्रीय राज्यसत्ता द्वारा शासित होता होगा।लेकिन इन नगरपालिकाओं के मध्य किसी ढीले-ढाले और सामाजिक संगठन की संभावना से भी इंकार नही किया जा सकता है।
इतनी समानताएं कैसे ?
अधिशेष उत्पादन हडप्पा सभ्यता के सामाजिक-आर्थिक विकास का इंजन साबित हुआ। इसने व्यापक सामाजिक-आर्थिक परिवर्तनों एवं एक राजनीतिक प्रक्रिया की शुरुआत को जन्म दिया। ग्रामीण समाज को  यह लाभ हुआ कि अब उसका पेट भरने लगा तथा उसकी दैनिक आवश्यकतायें भी पूरी होने लगी। लेकिन यह अधिशेष उत्पादन ग्रामीणों को बहुत ज्यादा समृद्ध नहीं बना पाया क्योंकि इसकी मात्रा बहुत ज्यादा नही थी, क्योंकि लकड़ी के हल के द्वारा जुताई की अपनी एक सीमा थी। परंतु इस अधिशेष उत्पादन से नगरीय व्यापारी वर्ग अत्यधिक समृद्ध हो गया। अधिशेष के अधिकांश भाग पर व्यापारी वर्ग नियंत्रण स्थापित करने में सफल हुआ और उसने इससे अत्यधिक लाभ कमाया। अधिकांश नगर खाध्यान्नों के आगार बन गए। जहां विशाल अन्नागारों में, प्रचुर मात्रा में अनाजों का भंडार उपलब्ध रहता था। इसके विपरीत ग्रामीण समुदाय अभी भी प्रायः अभावग्रस्त जीवन ही जीता रहा। क्योंकि वर्ष के अंत तक अधिशेष अन्न भी समाप्त हो जाता रहा होगा जैसा कि आज भी ग्रामीण क्षेत्र के किसानों के बीच देखने को मिलता है।
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                         अतीत-मंथन
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   नगरों में विशाल अन्नागारों में संग्रहीत खाध्यान्नों की सुरक्षा नगरपालिकाओं के लिए हमेशा चुनौतीपूर्ण कार्य रहा होगा। क्योंकि अकाल,सूखा एवं भुखमरी तथा अन्य प्रकृतिक आपदाओं के समय ग्रामीणों द्वारा खाध्यान्न प्राप्ति के लिए अकेले अथवा सामूहिक रूप से आक्रमण किया जाता रहा होगा। ये विशाल अन्नागार, ग्रामीण आक्रमणकारियों को ठीक उसी प्रकार लालायित करते होंगे जैसे मध्यकालीन भारत के अत्यंत समृद्ध मंदिर एवं मठों ने विदेशी आक्रांताओं को लालायित किया था। इसके अतिरिक्त घने जंगलों में उपस्थित खूंखार जंगली जानवरों का भी खतरा लगातार बना रहता था, जिससे नगरीय सुरक्षा की अवश्यकता थी।
इन सभी कारणों ने नगरवासियों को दुर्गीकरण के लिए प्रेरित किया। हड़प्पाई नगरों का दुर्गीकरण किसी बाह्य आक्रमण अथवा किसी आक्रमणकारी सेना से सुरक्षा के लिए नही वरन ग्रामीण अनाज लुटेरों और जंगली जानवरों से सुरक्षा के लिए हुआ होगा। क्योंकि नगरीय समृद्धि, अभाव एवं असंतोष के कारण,ग्रामीण आक्रमणों को आकर्षित करती होगी। घोड़े के पुरातात्विक साक्ष्य इतनी संख्या में नही मिले हैं कि यह माना जा सके कि सुदूर क्षेत्रों से हड्प्पाई क्षेत्र की किसी नगरपालिका पर कोई संगठित आक्रमण हुआ होगा। घोड़े के पुरातात्विक साक्ष्यों का अल्प अथवा नगण्य संख्या में पाया जाना, बाह्य आक्रमण द्वारा हड़प्पा सभ्यता के पतन को सीरे से नकारने के लिए पर्याप्त है।

   अंततः लंबी दूरी के व्यापार का विकास हुआ जैसा कि पूर्व वर्णित है। विलासितापूर्ण जीवन की चाह एवं उससे जनित आवश्यकताओं ने लंबी दूरी के व्यापार को प्रोत्साहित किया। उदाहरण के लिए चांदी जो एक बहुमूल्य धातु है, की प्राप्ति के लिए अफगानिस्तान के सुदूर क्षेत्रों तक हड़प्पाई व्यापारियों ने यात्राएं की। लंबी दूरी के व्यापार ने सामाजिक सम्बन्धों का दायरा विकसित किया। लोगों ने व्यापार के माध्यम से एक दूसरे के आचार-विचार को जाना,समझा,अपनाया होगा। इसका यह परिणाम हुआ होगा कि नगर-नियोजन एवं स्वच्छता, सभ्य होने की पहचान से जुड़ गए होंगे और ये सामान्य आचार-संहिता के अंग के रूप में सामने आए होंगे, जिनको एक नगरपालिका से दूसरी ने व्यापारियों के माध्यम से अपनाया होगा। 

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