शनिवार, 23 सितंबर 2017

सिंध: इतिहास के गर्भ में पल रहा देश

सिंध:इतिहास के गर्भ में पल रहा देश
--------------      ------@सुनील सत्यम
सिंधु नाम आता है तो हर हिंदुस्तानी एक स्वाभाविक जुड़ाव महसूस करता है।बचपन से हम राष्ट्रगान गाकर बड़े हुए है।जिसमे तीसरी पंक्ति में पंजाब,सिंध,मराठा,द्रविड़ उत्कल बंग, शब्द आते हैं।हम सिंध शब्द के अस्तित्व के बिना देश के राष्ट्रगान की कल्पना नही कर सकते हैं।यदि इस शब्द को राष्ट्रगान से निकाल दिया जाए तो क्या राष्ट्रगान का कुछ महत्व रह जायेगा।हमने कभी यह विचार क्यों नही किया कि क्या सिंध के बिना हिन्द का कोई अर्थ है।हिंदुस्तान की सभ्यता का जन्मस्थल ही सिंधु नदी रही है।सिंधु के बिना हिन्द वैसा ही है जैसे मां के बिना उसके पुत्र!
आडवाणी ने दिल्‍ली में आयोजित इंडिया फाउंडेशन अवेयरनेस प्रोग्राम के दौरान कहा कि मैं किसी देश का नाम नहीं लेना चाहूंगा लेकिन एशिया में कुछ देश ऐसे हैं निसे भारत को संबंध सुधारने की जरूरत है। अगर ऐसा होता है तो मुझे खुशी होगी। उन्होंने कहा कि जहां मेरा जन्म हुआ है वह सिंध है और आज वह भारत का हिस्सा नहीं है। मुझे इस बात का दुख है। उन्होंने जोर देकर कहा था कि सिंध के बिना भारत अधूरा है।
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अतीत-मंथन
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    भौगोलिक रूप से पाकिस्तान में स्थित सिंधु प्रान्त की लंबी सीमा रेखा भारत के राजस्थान एवं गुजरात प्रान्त से लगती है।सिंध में अभी भी कई ऐसे जिले हैं जहां हिंदुओ की आबादी आधे से कुछ ज्यादा या कुछ ही कम है।पाकिस्तान की कुल हिन्दू आबादी का लगभग 95 फीसदी हिंदू सिंध प्रांत में हैं। थारपकड़ में ज्यादातर जमीनें हिंदुओं की हैं। सिंध के केवल थारपकड़ जिले में ही हिंदू बहुसंख्यक हैं-51 प्रतिशत। अन्य जिले जहां हिंदुओं की बड़ी आबादी है, वे हैं-मीरपुर खास (41 फीसदी), सांघर (35 फीसदी), उमरोकट (43 फीसदी)। करीब 82 फीसदी पाकिस्तानी हिंदू निचली जातियों से हैं, जिनमें से ज्यादातर श्रमिक हैं। जिन शहरों में हिंदुओं की आबादी है, वे हैं-कराची, हैदराबाद, जाकोबाबाद, लाहौर, पेशावर और क्वेटा।
पाकिस्तान के निर्माण के बाद पाकिस्तानी हुकूमत पर पंजाबी वर्ग का वर्चस्व स्थापित हो गया।शासन प्रशासन के प्रत्येक स्तर पर पंजाबी हावी हो गए।सेना पर भी इसी वर्ग ने वर्चस्व स्थापित कर लिया जिसके कारण सिंध,बलोचिस्तान एवं खैबर पख्तूनख्वा प्रान्तों के लोगों में असंतोष उभरना स्वाभाविक था।बलोचिस्तान वैसे भी पाकिस्तान निर्माण के समय पाकिस्तान का हिस्सा न होकर एक स्वतंत्र देश था जिस पट जिन्नाह ने ब्लोचों को धोखे में रखकर 1948 में जबरन कब्जा कर लिया था।बलोच कौम तभी से बलोचिस्तान की आज़ादी के लिए संघर्ष कर रही है।वर्ष 2016 में 15 अगस्त को लाल किले से अपने भाषण में भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के भाषण में बलूचिस्तान का जिक्र आने के बाद, बलूचिस्तान आंदोलन और ज्यादा गति पकड़ गया।इसके बाद पूरी दुनिया मे ब्लोचों के धरने प्रदर्शनों में तेजी आ गई और अंतरराष्ट्रीय मीडिया ने भी बलोच आंदोलन को तवज्जो देनी शुरू कर दी।
दुनिया भर में बलोच आंदोलनकारियों के लिए सहानुभूति बढ़ी। बलोच स्वतंत्रता आंदोलन को मिली तवज्जों ने सिन्धुदेश की आज़ादी के आंदोलन को भी आत्मबल प्रदान किया।सिन्धुदेश कि आज़ादी का आंदोलन भी पिछले 45 वर्षों से जारी है।पाकिस्तान के सिंधु प्रान्त में सिंधी भाषी लोग रहते हैं जो संस्कृति, रीति-रिवाज, इतिहास में पाकिस्तान से बिल्कुल अलग पहचान रखते हैं। सिंध प्रांत के लोग स्वयं को अलग राष्ट्रीयता का मानते हैं और 1972 से ही अलग सिंधुदेश की मांग को लेकर आंदोलनरत हैं।हाल ही के वर्षों में अलग सिन्धुदेश की मांग का आंदोलन पहले से कहीं ज्यादा जोर पकड़ गया है।सोशल मीडिया एवं पारंपरिक मीडिया के द्वारा भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इस आंदोलन के प्रति सहानुभति उत्पन्न हुई है।क्योंकि इन मीडिया माध्यमों ने सिंध प्रांत में पाकिस्तानी पंजाबी सत्ताधीशों द्वारा हो रहे मानवाधिकारों के हनन को दुनिया के सामने प्रभावी तरीके से उद्घाटित किया है।
    सिंधुदेश का आंदोलन नेतृत्व अल्ताफ हुसैन की लीडरशिप में मुत्ताहिदा क़ौमी मूवमेंट एवं सिंध कौमी महाज द्वारा किया जा रहा है।पाकिस्तानी सेना पूरी ताकत के साथ इस आंदोलन को कुचलने में लगी है इसीकारण आंदोलन के प्रमुख सूत्रधार अल्ताफ हुसैन पिछले कई वर्षों से ब्रिटेन में निर्वासन में रह रहे हैं।
  सिंध के स्वतंत्रता सेनानी "जिये सिंध" यानी सिंध जिंदाबाद का नारा अपने संघर्ष के लिए प्रयोग करते हैं। ये नारा है आजाद सिंधुदेश के आंदोलन का। पाकिस्तान ने इस आंदोलन को जुल्म और संगीनों के साए तले दबा कर दुनिया से छुपाए रखा था। कई बार अहिंसक आंदोलनकारियों पर गोलियां चलाईं गईं और दुनिया को पता तक नहीं चला। लेकिन अब वैश्विक परिस्थितियां बदल गई है।गत वर्ष प्रदर्शनकारियों ने मीरपुर खास की सड़क पर आजादी का मार्च भी निकाला। जिये सिंध कौमी महाज के आंदोलनकारी सिंधी बोलने वाले पाकिस्तान के इलाके की आजादी की मांग कर रहे थे।
   सिंध का स्वतंत्रता का आंदोलन इतना मजबूत है कि सिंधुदेश का राष्ट्रगान तक बनाया जा चुका है। सिंधुदेश का झंडा तक तय किया जा चुका है, जो लाल रंग का है, बीच में एक सफेद गोले में काले रंग में फरसा लिए हुए एक हाथ है। इस झंडे के तले लंबे वक्त से आजादी की मांग कर रहे आंदोलनकारियों की मांग है कि पाकिस्तान सिंध में जनमत संग्रह कराए ताकि सिंध की जनता आत्मनिर्णय करके अपनी आजादी का फैसला कर सके। लेकिन कश्मीर में जनमत संग्रह का राग अलापने वाला पाकिस्तान, सख्ती से इस मांग को दबा देता है। अक्सर निहत्थे आंदोलनकारियों की भीड़ पर गोलियां और तोपें तक चलाई जाती हैं । जिये सिंध कौमी महाज के समर्थक अपने उपाध्यक्ष केहर अंसारी की सलामती की मांग को लेकर सड़कों पर उतरे थे, लेकिन पाकिस्तानी फौज ने उनपर भी बर्बरतापूर्वक गोलियां चलवा दीं।
     1970 में जब पाश्चिमी पाकिस्तान के सिंधी-भाषी जी एम सैयद ने बांग्लाभाषियों पर हो रहे जुल्म का विरोध किया तो पाकिस्तान सरकार ने उन्हें माफ नहीं किया और नजरबंद कर दिया। मौत तक वो बिना मुकद्दमे के हिरासत में ही रहे, मानवाधिकार संगठन एमनेस्टी इंटरनेशनल ने उन्हें 'अंतरात्मा का कैदी' नाम दिया।  इस कैदी की आत्मा इतनी आजाद थी कि जी एम सैयद ने 1972 में अलग सिंधुदेश का प्रस्ताव रखा। इसके साथ ही पाकिस्तान में 45 साल से अलग सिंधुदेश का आंदोलन जारी है।
सिंधीभाषी चाहते हैं भारत, आज़ादी के उनके संघर्ष में मदद के लिए आगे आए। सांस्कृतिक रूप से भी सिंधीभाषी भारत से अपना आत्मीय एवं भावनात्मक जुड़ाव महसूस करते हैं। अब ऐसे वीडियो भी बन चुके हैं जिसमें भारतीय संस्कृति के साथ पुराने रिश्ते को दोबारा अपनाने और मजबूत करने के सपने तक साकार किए जाते हैं।
भारत पाकिस्तान की और आज़ादी के बाद से ही एक छद्म युध्द झेल रहा है।हमने हमेशा रक्षात्मक रुख अपनाया और अभी तक हजारों की संख्या में हमारे सैनिक एवं नागरिक इस लडाई में जान गंवा चुके है।अभ भारत को राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल की आक्रामक सुरक्षा की रणनीति पर विचार करना चाहिए। पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी की रणनीति इस संदर्भ में कारगर सिद्ध हो सकती है।कश्मीर में पाकिस्तान की किसी भी हरकत की प्रतिक्रिया सिंध में होनी चाहिए।सिंध दूसरा बांग्लादेश बन सकता है जो भौगोलिक, राजनीतिक रूप से सम्भव है।बलोचिस्तान के विपरीत सिंध भारत की सीमा से सटा हुआ है अतः उसके संघर्ष में मानवीय आधार पर सैन्य सहायता प्रदान करना काफी सुगम है।सिंध के स्वतंत्रता आंदोलन को कश्मीर में पाकिस्तान द्वारा आतंकी सहायता के विपरीत दुनिया भी नैतिक समर्थन दे सकती है।भले ही बलोचिस्तान का स्वतंत्रता संघर्ष सिंध के आंदोलन से पुराना हो लेकिन बलोचिस्तान की स्वतंत्रता का महामार्ग कराची से ही होकर गुजरता है।

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