मंगलवार, 1 अप्रैल 2014

बस्ती-विस्थापन से उत्पन्न हुई अधिकांश वर्तमान बस्तियां.:::-सुनील सत्यम

कल अवशेष मात्र है.मुख्य रूप से गाँव की प्राचीन चौपाल जो 50 वर्ष से पुराणी नहीं है और लाला गीताराम का घर लखौरी ईंटो से बना है.इसके अतिरिक्त कोई भी ऐसी सरंचना गाँव में नहीं मिलती है जो इसके अपने इतिहद को 160-200 वर्षों से पीछे ले जाती हो.
लेकिन इसमें कोई संदेह नहीं है कि गाँव की बस्ती से कहीं अधिक पुराना गाँव वासियों का इतिहास है.
हथछोया गाँव की बस्ती की स्थापना के पीछे " बस्ती विस्थापन" का सीधा हाथ दिखाई पड़ता है. गाँव की मूल बस्ती से लगभग 1.5 किलोमीटर दूरी पर सुजानखेड़ी और ",विशाल डाबर (जोहड़) के दूसरी और स्थित हड़प्पा कालीन दो बस्तियों से अलग-अलग कारणों से बस्ती का विस्थापन हुआ और यहाँ के लोग हथछोया के मूल स्थान की भौगोलिक रूप से लाभदायक अवस्थिति के कारण यहाँ आ बसे जिसके पुख्ता प्रमाण हैं.
हथछोया गाँव में जोहड़,गुल्ही,देवावाला और यहाँ से बमुश्किल आधा किलोमीटर की दूरी पर बराला नामक चार विशालकाय तालाबों का 200 बीघे से अधिक का रकबा था, जिसके आज अवशेष मात्र हैं.यह क्षेत्र पूर्व में घने जंगलों से आबाद क्षेत्र था.हड़प्पा कालीन बस्तियों से भयानक महामारी के कारण सम्पूर्ण बस्ती का विस्थापन, विशाल जोहड़ के पश्चिम की और
हो गया, 20 वर्षो पहले तक इन दोनों बस्तियों के अवशेष गाँव में " बड़ी भेंट" और "छोटी भेंट" के नाम से रहा है.ये वास्तव में प्राचीन हड़प्पा कालीन बस्तियों के अवशेष थे जो हरित-क्रान्ति के फलस्वरूप हुए कृषि विकास की भेट चढ़ गये.
जब हम छोटे थे तो चोर सिपाही का खेल खेलते हुए अक्सर जोहड़ के बीच से होकर जाने वाले संकरे मार्ग से निकलकर इन भेंटो की और निकल जाया करते थे.भेंटो के उपर तक चले जाना हमे किसी एडवेंचर से कम नहीं लगता था.परिवार वालो की तरफ से वहां जाने की साफ़ मनाही होती थी क्योंकि ऐसी धारणा गाँव में उस समय प्रचलित थी कि इन "भेंटो" पर जाने से भूत चिपट जाते है.उन दिनों इन भेंटो पर ही शमशान होते थे.छोटी भेंट को चुहड़ो की भेंट कहा जाता था क्योंकि उस समय प्रचलित
भेदभाव के कारण चुहड़ो के मुर्दों का अंतिम संस्कार छोटी भेंट पर ही किया जाता था.
हडप्पा कालीन कुछ इंटे हाल के वर्षो तक गाँव में दिखाई देती रही जो इस बात का प्रमाण है कि इन भेंटो से विस्थापित हुए लोगो ने अपने अधिवासों के निर्माण के लिए पुरानी ईंटो का प्रयोग किया जो वे अपने साथ पुरानी बस्तियों से लाये थे.
दूसरा विस्थापन सुजानखेडी की बस्ती से हथछोया में हुआ जिसके कारण अलग थे.......जारी