यद्यपि भारत में ताम्रपाषाणिक संस्कृतियों की कालावधि कांस्य युग के बाद की है तथापि कुछ ताम्रपाषाणिक संस्कृतियां हड़प्पा-पूर्व तथा परिपक्व हड़प्पा कालीन भी हैं।गणेश्वर (2800 ई.पू.-2200ई.पू.) परिपक्व हडप्पा कालीन ताम्रपाषाणिक स्थल है।गणेश्वर, खेतड़ी की ताम्र खदानों के समीप था जो हड़प्पा को ताम्र उपकरणों की आपूर्ति करता था।यहां से अनेक ताम्र उपकरण जैसे मछली पकड़ने के कांटे तथा बाणाग्र मिले हैं।वे हड़प्पा से प्राप्त उपकरणों के समान हैं।यहां से हड़प्पाई मृदभांडों के समान मृदभांड का एक टुकड़ा भी प्राप्त हुआ है।
गणेश्वर से काले रंग से रँगी चित्रित धूसर मृदभांड भी प्राप्त हुए हैं।वास्तव में गणेश्वर से प्राप्त सामग्री न तो नगरीय है और न ही पूर्णतः चित्रित धूसर मृदभांड।यहां से ताम्र निधि संस्कृति के अवशेष मिले हैं।अर्थात यह एक पूर्व हडप्पा कालीन ताम्रपाषाणिक स्थल है जिसने परिपक्व हड़प्पा के उदय में योगदान किया।कालीबंगा, बनावली(हरियाणा),कोटदीजि (सिंध) आदि स्थलों से हडप्पा सभ्यता के तीनों चरण के अवशेष मिले हैं।जो इनके ताम्रपाषाण से परिपक्व हड़प्पाई स्थल में विकसित होने का प्रमाण है।।
सिंध के कई स्थल पूर्व हडप्पा सभ्यता के केंद्रीय स्थल का निर्माण करते हैं। यह संस्कृति ही बाद में विकसित एवं परिपक्व सभ्यता में परिवर्तित हो गई और इसने सिन्ध तथा पंजाब में शहरी सभ्यता को जन्म दिया।
पाकिस्तान के पुरातत्वविद डॉ एम आर मुगल एवं फ़ज़ल खान ने चोलिस्तान पर अनुसंधान कार्य किया है।पाकिस्तान के चोलिस्तान क्षेत्र में 4000 ई.पू. में अनेक पूर्व हड़प्पाई कृषि अधिवास विकसित हुए तथापि प्रारम्भिक कृषि अधिवास ब्लूचिस्तान में 7000 ई.पू. विकसित हुए थे।पांचवीं, चौथी सहस्राब्दी में अन्नागार बनाये जाने लगे थे तथा गारे की ईंटो (कच्ची ईंट) का भवन निर्माण में प्रयोग होने लगा था।पालिशदार मृदभांड तथा टेराकोटा की स्त्री मृण्मूर्तियों (मातृ देवी-शक्ति उपासना) का भी निर्माण होने लगा था।
व उत्तरी ब्लूचिस्तान में रहमान ढेरी सर्वप्रथम नियोजित नगर के रुप में विकसित हुआ।यहां नियोजित सड़कें तथा घर थे।यह स्थल पश्चिम में हडप्पा के समानांतर अवस्थित था।इस प्रकार प्रारम्भिक तथा परिपक्व हड़प्पा सभ्यता ब्लूचिस्तानी अधिवासों से विकसित हुई थी।हाकरा तथा प्रारम्भिक हाकरा संस्कृतियों एम आर मुगल द्वारा चोलिस्तान क्षेत्र में उत्खनन तथा ए एच दानी द्वारा उत्तर पश्चिम सीमा प्रान्त में गंधार शवाधानों का उत्खनन कराया गया है।जहां से महत्वपूर्ण साक्ष्य प्राप्त हुए है।
अंततोगत्वा, विभिन्न प्रारम्भिक हड़प्पाई ताम्रपाषाण संस्कृतियों ने सिंध,ब्लूचिस्तान,राजस्थान तथा अन्य स्थानों में कृषि समुदायों के फैलाव को प्रोत्साहित किया।जिसने हडप्पा की नगरीय सभ्यता के उदय की पृष्ठभूमि हेतु परिस्थितियां तैयार की।इस संदर्भ में सिंध में कोटदीजि तथा आमरी एवं राजस्थान में कालीबंगा तथा गणेश्वर के दृष्टांत उल्लेखनीय हैं। इससे स्पष्ट होता है कि कुछ ताम्रपाषाणिक कृषक समुदाय सिंधु नदी के बाद के मैदानों की ओर बढ़े तथा उन्होंने कांस्य तकनीकी सीखी और विभिन्न सहायकों कारकों की मदद से नगरों की स्थापना में सफल हुए।जिसमें एक प्रमुख कारक कृषि अधिशेष उत्पादन तथा उसके कारण गैर-कृषक समुदायों को उत्पत्ति एवं हाट बाजारों की शुरुआत भी था।
कभी कभी हडप्पा सभ्यता की उतपत्ति का श्रेय प्रकृतिक पर्यावरण को भी दिया जाता है हड़प्पा क्षेत्र का आधुनिक पर्यावरण भले ही शुष्क तथा अर्धशुष्क हो लेकिन 3000 ई.पू.-2000 ई.पू. में हमें यहां पर्याप्त वर्षा तथा सिंधु एवं इसकी सहायक नदियों सरस्वती/हाकरा में प्रचुर जल बहाव के साक्ष्य प्राप्त होते हैं अर्थात स्पष्ट है कि इस प्रकार के अनुकूल प्राकृतिक पर्यावरण ने भी हडप्पा सभ्यता के उदभव में सकारात्मक भूमिका अदा की।
हडप्पा के संस्थापक
कई इतिहासकार तथा भौतिक नृ- वैज्ञानिकों ने मोहनजोदड़ो की कंकाल सामग्री के अध्ययन के आधार पर हड़प्पा वासियों को अनेक प्रजातियों में विभाजित किया है:
आद्यआस्ट्रेलायड, भूमध्यसागरीय, एल्पाइन एवं मंगोलाभ।
लेकिन आधुनिक भौतिक नृवैज्ञानिक इस अवधारणा का खंडन करते हैं उनका मानना है कि:
* हडप्पा,मोहनजोदड़ो तथा लोथल के लोगों की नाक चपटी थी।
* दूसरा निष्कर्ष यह है कि अन्य दोनों स्थलों के लोगों की तुलना में लोथल के लोगों का सिर भी चौड़ा था।
* हड़प्पा की कंकाल सामग्री के आधार पर इतिहासकारों का मत है कि इनमें से प्रत्येक स्थल की जनसंख्या कम से कम सिर तथा नाक के आकार एवं कद की दृष्टि से एकसार थी अर्थात उनकी अपनी अपनी मूल रचना चाहे जैसी भी रही हो इनमें प्रत्येक स्थल की जनसंख्या एक ही जीव वैज्ञानिक समूह से सम्बद्ध थी।उनका सम्बन्ध ऐसी भिन्न भिन्न प्रजातियों से नही जोड़ा जा सकता है जिनकी शारीरिक विशेषताएं भिन्न हों। डी के सेन का मत है कि पंजाब,सिंध की जनसंख्या चपटी नाक,ऊंचे कद तथा लंबे सिर वाली थी जबकि गुजरात के लोगों का सिर गोल-मटोल था।
स्मरणीय है कि इन लोगों के शारीरिक प्रारूपों का किसी युग या क्षेत्र विशेष की संस्कृति या सभ्यता से कोई सीधा संबंध नही था।निष्कर्षतः, हडप्पा सभ्यता के सृष्टा, मामूली परिवर्तनों के साथ, इस सभ्यता के वर्तमान क्षेत्रों के लोगों के पूर्वज ही थे।इस बात की पुष्टि इंस्टिट्यूट ऑफ जीनोमिक्स एंड इंटेग्रेटेड बायोलॉजी (इजिब) के मानव जीनोम प्रोजेक्ट के निष्कर्षों से भी हो जाती है।इस प्रोजेक्ट का प्रमुख निष्कर्ष है कि "विभिन्न प्रजातियों में जीन के आधार पर विभेद कठिन है।सभी की मूल जैविक संरचना समान है।"
(लेखक राज्यकर विभाग में असिस्टेंट कमिश्नर है, प्रस्तुत लेख लेखक का निजी शौध-पत्र है)
मंगलवार, 26 सितंबर 2017
स्थानीय निवासी थे हडप्पा के शिल्पी
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