शनिवार, 5 मार्च 2016

गांधी-नेहरू नहीं चाहते थे आज़ादी ?

सन् 1947 से पहले कई ऐसे अवसर आये जब आज़ादी भारत की दहलीज़ पर खड़ी थी लेकिन महात्मा गांधी और जवाहर लाल नेहरू दोनों ने "अनुकूल परिस्थितयों " के आने तक के लिए उस अवसर को आगे के लिए टाल दिया।
     प्रथम विश्व युद्ध 1914 से 1918 तक चला जिसने ब्रिटिश भारत सरकार को आर्थिक रूप से काफी कमजोर बना दिया था, यही वह समय भी था जब भारत में आज़ादी के लिए होने वाले क्रन्तिकारी आंदोलन की धार भी काफी तेज हो चुकी थी।ब्रिटिश सरकार द्वारा परिस्थितियां लगातार नियंत्रण से बाहर होती जा रही थी।सरकार हताशा के दौर से गुजर रही थी।इसी हताशा का परिणाम सन् 1919 में जलियांवाला बाग़ हत्याकांड के रूप में सामने आया,जिसकी दुनियाभर में आलोचना की गई।भारत जैसे संसाधन समृद्ध देश पर ब्रिटेन के कब्जे को ताकतवर होते अमरीका जैसे देश भी ईर्ष्या की दृष्टि से देख रहे थे और इसी कारण से वह भी ब्रिटेन से भारत की आज़ादी चाहते थे।
सन् 1919 से लेकर 1940 तक के बीच के काल में भारत में ब्रिटेन की उपस्थिति किसी के घर पर "टाइमपास गेस्ट" की भांति थी. किसी भी एक तगड़े झटके से ब्रिटिश सत्ता के तार तार होने की स्थिति थी।लेकिन महात्मा गांधी को जवाहर लाल नेहरू के सत्तासीन होने के अनुकूल परिस्थितयों का इंतज़ार था।इसलिए वह किसी न किसी बहाने आज़ादी को टालते रहे।क्योंकि भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के आसमान पर गांधी 1919 के बाद "काले बादलों" की तरह छाये हुए थे।