बलूचिस्तान:इतिहास एवं वर्तमान
@ सुनील सत्यम
बलूचिस्तान का इतिहास पाकिस्तान के इतिहास से कई हजार वर्ष पुराना है।उतना ही पुराना है ब्लूचिस्तान जितना की स्वयं भारत। विदित है कि कभी अफगानिस्तान, बलूचिस्तान, पाकिस्तान और शेष भारत, भौगोलिक रूप से एक ही देश,भारत का अंग थे। बलूचिस्तान भी आर्यावर्त का एक हिस्सा है। सप्त सैंधव क्षेत्र का विस्तार प्राचीन काल में वैदिक युग में पर्शिया से लेकर गंगा, और पूर्व में सोन एवं पुनपुन के पर तक था जिसमें सिंधु घाटी का क्षेत्र सबसे महत्वपूर्ण था। वैदिक साहित्य में बार बार सप्तसैंधव प्रदेश की चर्चा आई है,जो आर्यों द्वारा अधिवासित प्रमुख भौगोलिक क्षेत्र था।
ऐसा माना जाता है कि बलूच, पख्तून,अफगान, पंजाबी, कश्मीरी आदि पश्चिम भारत के लोग पुरु वंश से संबंध रखते हैं ।यही वंश आगे चलकर कुरु वंश के साथ सम्मिलित हो गया और ये सम्मिलित रूप से कौरव कहलाए। भारत का ज्ञात इतिहास पौराणिक रूप से लाखों वर्ष प्राचीन है लेकिन पुरातात्विक एवं ऐतिहासिक साक्ष्य भी इसे दस हजार वर्ष से प्राचीन मानते हैं।ब्लोचों का भी मत हैं कि उनके इतिहास की शुरुआत 9 हजार ई.पू. हुई थी।
बलूचिस्तान में हिंगोल नदी के किनारे महत्वपूर्ण 51 शक्तिपीठों में से एक हिंगलाज माता शक्तिपीठ स्थित है,जिसका वर्णन दुर्गाशप्तशती के अंतर्गत श्री दुर्गा चालीसा में भी किया गया है-"हिंगलाज में तुम्ही भवानी,महिमा अमित न जात बखानी"।
हिंगलाज माता मंदिर, पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में सिंध राज्य की राजधानी कराची से 120 कि॰मी॰ उत्तर-पश्चिम में हिंगोल नदी के तट पर ल्यारी तहसील के मकराना के तटीय क्षेत्र में हिंगलाज में स्थित है। यह इक्यावन शक्तिपीठ में से एक माना जाता है और कहते हैं कि यहां सती माता के शव को भगवान विष्णु के सुदर्शन चक्र से काटे जाने पर यहां उनका ब्रह्मरंध्र (सिर) गिरा था।
बलूचिस्तान में भगवान बुद्ध की अनेक मूर्तियां पाई गईं। कभी यह सम्पूर्ण क्षेत्र में बौद्ध धर्म के व्यापक प्रभाव के अंतर्गत था लेकिन इस्लाम के आगमन ने बौद्धों को पलायन के लिए मजबूर कर दिया अथवा उनका वृहद रूप में धर्मांतरण किया गया।
देश के प्राचीन 16 महाजनपदों में गांधार अफगानिस्तान में स्थित था जिसके अंतर्गत ही बलोचिस्तान भी अवस्थित था। बाद में इस क्षेत्र पर चन्द्रगुप्त मौर्य अधिकार रहा। महाभारत में भी लगभग 200 जनपदों का वर्णन मिलता है जिनमें खांडव, सौवीर सौराष्ट्र, कुरु, पांचाल, कौशल, शूरसेन, किरात, निषाद, मत्स, चेदि, उशीनर, वत्स, कौशाम्बी, विदेही, अंग, प्राग्ज्योतिष (असम) ,दार्द, हूण हुंजा, अम्बिस्ट आम्ब, पख्तू, कम्बोज, गांधार, कैकय, वाल्हीक बलख, अभिसार (राजौरी), कश्मीर, मद्र, यदु, तृसु, घंग, मालवा, अश्मक, कलिंग, कर्णाटक, द्रविड़, चोल, शिवि शिवस्थान-सीस्टान-सारा बलूच क्षेत्र, सिंध का निचला क्षेत्र दंडक महाराष्ट्र सुरभिपट्टन मैसूर, आंध्र तथा सिंहल आदि प्रमुख हैं। इनमें से लगभग 30 के द्वारा महाभारत के युद्ध में भाग लेने का वर्णन मिलता है।
बालाकोट,ब्लूचिस्तान में स्थित प्रमुख हड़प्पाई क्षेत्र है। यह नालाकोट से लगभग 90 किमी की दूरी पर बलूचिस्तान के दक्षिणी तटवर्ती क्षेत्र में स्थित था। बालाकोट से हड़प्पा पूर्व एवं हड़प्पा कालीन अवशेष प्राप्त हुए हैं। पुरातात्विक दृष्टि से महत्वपूर्ण मेहरगढ़ का स्थान बलूचिस्तान के कच्ची मैदानी के क्षेत्र में है। मेहरगढ़ की संस्कृति और सभ्यता को 7 हजार ईसापूर्व से 2500 ईसापूर्व एक पूर्व-हड़प्पाई अधिवास था जहां से कृषि एवं पशुपालन के प्राचीनतम साक्ष्य मिले हैं जिन्हें ई.पू. 6000 से प्राचीन बताया जाता है(फ्रांसीसी पुरातत्ववेत्ता प्रोफेसर जैरिग)
मेहरगढ़ आज के बलूचिस्तान में बोलन नदी के किनारे स्थित है। ब्लूचिस्तान से कई पुरापाषाण कालीन बस्तियां भी प्रकाश में आई हैं।
बलूचिस्तान, विश्व मानचित्र पर 30 .07 डिग्री उत्तर तथा 67.01 डिग्री पूर्व अक्षांशों के बीच अवस्थित है। इस देश का (जिस पर पाकिस्तान का अनधिकृत कब्जा है.) सबसे बड़ा और राजधानी नगर क्वेटा है। आजकल, पाकिस्तान द्वारा इसके नागरिकों पर किए जा रहे अत्याचारों के लिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियों में है। विश्व की महान हड़प्पा सभयता के आरंभिक बीज बलूचिस्तान के प्रसिद्ध मकरान तट तथा इसके पूर्वी क्षेत्र में ही पनपे थे। रहमान ढेरी तथा मेहरगढ़ इस क्षेत्र में हड़प्पा सभ्यता के प्रतिनिधि स्थल है।
ईरानी व अफगानी बलोच क्षेत्र को छोड़ दें तो पाकिस्तान अधिकृत बलूचिस्तान 4 रियासतों से मिलकर बना है। कलात,लासबेला, खरण तथा मकरान, यह 4 भारतीय देशी रियासतें ( Princely States) थी जिनका बाद में सिर्फ एक कलात में विलय हो गया। 1947 के भारतीय स्वतन्त्रता अधिनियम ने भारत का विभाजन भारत और पाकिस्तान नाम के दो अधिगणराज्यों के रूप में कर दिया, लेकिन देशी रियासतों के बारे में कोई निर्णय नहीं किया गया। यह देशी राज्यों के ऊपर छोड़ दिया गया कि उन्हें भारत में शामिल होना है या पाकिस्तान में अथवा स्वतंत्र रहना है। कलात के खान पर जिन्नाह ने दबाव डालना शुरू किया कि वह पाकिस्तान में शामिल होना स्वीकार करे। लेकिन खान ने जिन्नाह को कहा कि "वह अपनी परिषद के निर्णय से उन्हे अवगत करा देंगे, उन्हे पाकिस्तान में शामिल होने अथवा न होने पर पर विचार करने के लिए समय दिया जाए। " लेकिन खान के किसी जबाब की प्रतीक्षा किए बिना जिन्नाह ने 26 मार्च 1948 को पाकिस्तानी सेना को बलूचिस्तान पर आक्रमण करने का आदेश दे दिया। पाकिस्तान द्वारा 1 अप्रैल 1948 को कलात पर बलात कब्जा कर लिया गया । कलात के खान ने कभी भी "विलय पत्र" पर हस्ताक्षर नहीं किए।
असल में भारत में वहाबी विचारों से प्रभावित तत्कालीन ढाका के नाबाब सलीमुल्लाह और नाबाब आगा खान जैसे लोगों ने धर्म के आधार पर पाकिस्तान के विचार की नींव रखी जिसका प्रारम्भ में तो भारतीय मुस्लिम मानस ने समर्थन नहीं किया। लेकिन जैसे जैसे धर्म के आधार पर विभाजन की मांग ने ज़ोर पकड़ना शुरू किया अधिकाधिक संख्या में मुस्लिम पाकिस्तान के विचार की और आकर्षित होते चले गए। शिया खोजा पंथ से संबंध रखने वाले जिन्ना ने अपने राजनीतिक पुनर्वास के लिए पाकिस्तान के विचार का अधिग्रहण कर लिया और 1947 आते आते उसने भारत में स्वयं को मुसलमानों के सबसे बड़े नेता के रूप में स्थापित कर लिया।
भारत का विभाजन आनन फानन में धर्म के आधार पर कर दिया गया था लेकिन पाकिस्तान एक कृत्रिम देश के रूप में दुनिया में अस्तित्व में आया । पाकिस्तान असल में तत्कालीन भारतीय राष्ट्रीय नेतृत्व की असफलता और कुछ समृद्ध मुस्लिम जातियों और मुस्लिम घरानों की राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं की परिणति मात्र था। इसके अंदर अवस्थित पख्तून, बलोच और सिंधी कौमे पाकिस्तान निर्माण के पक्ष में कभी नहीं थी। भारत के सीमांत गांधी खान अब्दुल गफ्फार खाँ ने कभी भी भारत विभाजन का समर्थन नहीं किया। विभाजन के बाद उन्होने गांधी जी पर विश्वास घात का आरोप लगाते हुए कहा था कि "गांधी जी ने हमें खूंखार भेड़ियों के आगे फेंक दिया है"
बलोच, सिंधी तथा पख्तूनों ने कभी भी खुद को पाकिस्तानी नहीं माना और वह 1947 से लेकर आज 70 वर्षों बाद भी अपनी-अपनी आज़ादी के लिए संघर्षरत हैं।
अपनी कौम की आज़ादी के लिए बलोच लोग लगातार संघर्षरत है। पाकिस्तानी फौज बलोच लोगों पर बेहिसाब जुल्म ढा रही है। 20 हजार से अधिक बलोच महिला एवं पुरुष गायब कर दिये गए जिन्हें मारकर समूहिक कब्रों में दफन कर दिया गया। पाकिस्तान की बलोचों पर ज़्यादतियाँ हिटलर की तानाशाहीपूर्ण दस्तानों को भी कम करार देती है।
पाकिस्तान के कुल भू भाग का 44% हिस्सा बलोचिस्तान के अंतर्गत आता है। लेकिन इसकी कुल जनसंख्या पाकिस्तानी जनसंख्या के 5% से भी कम है । बलूचिस्तान पेट्रोलियम,गैस, लोहा, तांबा,यूरेनियम , सोना चाँदी जैसे खनिजों में अत्यधिक समृद्ध है। इसकी समस्त खनिज संपदा पाकिस्तान द्वारा हड़प ली जाती है। इस प्रकार बलोचिस्तान के लोग एक अमीर क्षेत्र के गरीब लोग है। 1947 में भारत की आज़ादी के समय कलात के खाँ द्वारा भारत के प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के समक्ष पश्चिम भारत के रूप में विलय का प्रस्ताव रखा था जिसे उन्होने अव्यवहारिक कहकर अस्वीकार कर दिया था।
जिन्नाह के आदेश पर तत्कालीन पाकिस्तानी मेजर जनरल अकबर खान ने 27 मार्च 1948 को कळात के खान को गिरफ्तार करके ब्लूचिस्तान पर बलात कब्जा कर लिया था। तब से लगातार बलोच अपने राष्ट्र की आज़ादी के लिए संघर्षरत हैं। तब से हुए 5 प्रमुख विद्रोह में हजारों बलूच देशभक्त पाकिस्तानी फौज की बर्बरता का शिकार होकर अपने देश के लिए बलिदान हो गए।
(लेखक राज्य जीएसटी विभाग में असिस्टेंट कमिश्नर हैं।प्रस्तुत लेख में लेखक की निजिराय व्यक्त की गई है )
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