शुक्रवार, 22 सितंबर 2017

इतिहास:अयोध्या में हथछोया

इतिहास: अयोध्या में हथछोया
                           @सुनील सत्यम
बहुत छोटी उम्र से ही संजय सिंह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ गए थे। सन 1983 में संजय सिंह ने डी ए वी इंटर कालेज ऊन में पढ़ने के लिए 1984 में प्रवेश लिया और ऊन में ही रहने लगे, वह मास्टर श्री सत्यदेव शर्मा जी, जो इस स्कूल में जीवविज्ञान पढ़ाते थेके संपर्क में आए, जो संघ के वरिष्ठ कार्यकर्ता थे। संजय सिंह, सत्यदेव शर्मा जी के घर पर रहकर ही पढ़ाई करने लगे।
 1975 में आपातकाल के दौर में हथछोया के फूलसिंह दिलावरे सहारनपुर के प्रतिष्ठित संघ नेता सेठ गंगा प्रसाद माहेश्वरी के संपर्क में आये थे जो कि गिरफ्तारी से बचने के लिए फूल सिंह दिलावरे के पास खेत मे ठहरते थे। इसलिए संघ से पूर्व परिचित संजय सिंह  उन में रहकर संघ में अधिक सक्रिय होकर राष्ट्रकार्य में लग गए।मुझे याद है उस समय आज के बड़े कथावाचक एवं संत श्री विजय कौशल महाराज जी मुजफ्फरनगर जिले के जिला प्रचारक एवं श्री लक्ष्मण जी सहजिला प्रचारक थे। दोनों का ही मेरे घर पर खूब आना जाना होता था। दोनों ही लोग राजदूत मोटर-साइकल से आते थे। उन दिनों हमारा दिन में अक्सर खेत में ही रहना होता था। यह बात संघ से जुड़े हर कार्यकर्ता को पता थी इसलिए जो भी हमसे मिलने आता था, सीधे हमारे खेत में जाता था। खेत में हर मौसम में कोई न कोई फल भी खाने को मिल जाता था। उस समय हमारे खेत में आम, अमरूद, आड़ू, लोकाट, पपीता, चीकू, लीची, अंगूर, शरीफा, बेर, फूलम, शहतूत, जामुन, जमोया, आदि के पेड़ लगे हुए थे। गन्ना तो उपलब्ध रहता ही था। अतः इस कारण अथितियों का खूब सत्कार करने की सामाग्री खेत में ही उपलब्ध रहती थी।
   संत विजय कौशल जी महाराज (तत्कालीन विजय जी ) के कार्यकाल में सन 1985 में बड़ौत से संजय सिंह तोमर ने संघ शिक्षा वर्ग (ओटीसी) प्रथम वर्ष किया और वह संघ के इस क्षेत्र के ग्रामीण अंचल में पहले प्रशिक्षित कार्यकर्ता बन गए।सन 1985 में ऊन से दसवीं तथा 1988 राष्ट्रीय शिक्षा सदन इंटर कालेज झिंझना से 12 वीं की परीक्षा पास कर संजय सिंह तोमर 1989 में बी.एससी. करने के लिए डीएवी कालेज मुजफ्फरनगर, चले गए। यहाँ छात्रावास में रहकर उन्होंने अध्ययन किया। अपने समय में वह डीएवी कालेज मुजफ्फरनगर के जाने-माने छात्रनेता थे। यहाँ उन्होने शुभम छात्र संगठनकी स्थापना की और अनेक मुद्दो को लेकर छात्र हितों के लिए संघर्ष कियायह समय किसान नेता चौधरी महेंद्र सिंह टिकेत के उत्थान का समय था। पूरे देश में किसानों के राष्ट्रीय नेता के रूप में टिकेत प्रसिद्धि पा रहे थे। संजय सिंह द्वारा छात्र हितों के लिए किए जा रहे संघर्ष के बारे मे सुनकर चौधरी साहब स्वयं उनसे मिलने छात्रावास पहुंचे और उन्हे अपना आशीर्वाद दिया था। इसी समय तत्कालीन गृहमंत्री मुफ़्ती मोहम्मद सईद और विधायक सोमांश प्रकाश भी उनसे मिलने छात्रावास आए थे।
यहाँ टिकेत साहब के साथ बड़े भाई की फोटो लगाए।
चौधरी महेंद्र सिंह टिकेत के साथ डीएवी छात्रावास मुजफ्फरनगर मे तत्कालीन छात्रनेता संजय सिंह

 बी.एससी. के दौरान ही 1992 में संजय सिंह का लेखपाल (पटवारी) के पद पर चयन हो गया और अपनी पढ़ाई को बीच में छोड़कर ही उन्होने नौकरी ज्वाइन कर ली। प्रशिक्षण के बाद लेखपाल के रूप में 4 अप्रैल 1994 को तत्कालीन बुढाना तहसील के गंगेरू गाँव का कार्यभार संभाला। जब वह संघ के संपर्क में आए, उस समय मै कक्षा तीन में था। हम संघ शाखा में जाते थे, प्रार्थना करते थे लेकिन शिशु होने के कारण खेलने का मौका नहीं मिलता था, क्योंकि खेलने वाले सभी स्वयंसेवक तरुणावस्था के होते थे। मेरी उम्र के कई साथी भी उसी समय संघ शाखा में जाते थे जिनमे रवीन्द्र (मेहर सिंह दिलावरे), मनीष (राजेश लाला), ललित (लाला जगदीश प्रसाद), अश्वनी (जगरोशन मास्टर जी) जगपाल(कल्लन), राजबीर, आदि प्रमुख थे। मैंने शीघ्र ही रास्ता निकाल लिया। मनीष की मम्मी से भगवा रंग का एक छोटे आकार का ध्वज तैयार करवाया और अपनी अलग शिशु शाखा लगानी शुरू कर दी। शाखा लगाने की प्रणाली हमने शाखा मे जाकर सीख ही ली थी जो हमारे काम आई।कक्षा तीन से मैने संघ शाखा में जाना शुरू कर दिया था लेकिन मैंने कभी संघ की शाखा या किसी शिविर एवं अन्य कार्यक्रम में कभी राष्ट्रप्रेम के अलावा मुस्लिम,ईसाई या अन्य किसी पंथ के विरोध या उनके खिलाफ दुष्प्रचार की कभी कोई बात नहीं सुनी। अक्सर संघ को न जानने वाले लोग संघ के बारे मे ऐसा दुष्प्रचार करते है कि संघ मुस्लिम विरोधी है। जबकि हकीकत में संघ किसी का विरोधी न होकर एक राष्ट्रप्रेमी संगठन मात्र है, जैसा कि मैंने पाया। सन 1984 मे प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी जी की आतंकियों द्वारा जघन्य हत्या कर दी गई जिसके बाद हुए लोकसभा चुनावों में उनके ज्येष्ठ पुत्र श्री राजीव गांधी जी देश के प्रधानमंत्री बने। इसी समय सन 1985 में हरिद्वार मे विश्व हिन्दू परिषद ने भल्ला इंटर कालेज में विराट हिन्दू सम्मेलन का आयोजन करके रामजन्म भूमि अयोध्या की मुक्ति के लिए आंदोलन शुरू करने का एलान कर दिया। इसी क्रम में 1986 में रामजन्म भूमि का ताला खुलवाने के लिए देश भर मे आंदोलन शुरू हो गया। देश भर में इस विषय पर जन जागरण फैलाने के लिए राम जानकी रथ यात्राका आयोजन किया गया। हथछोया में भी सड़क पर ही रईये में राम जानकी रथका स्वागत किया गया। इसके बाद तत्कालीन राजीव गांधी सरकार ने रामजन्म भूमि का ताला खोलने के आदेश दे दिये। अब विश्व हिन्दू परिषद और अन्य हिन्दू संघठनो ने रामजन्म भूमि अयोध्या में भव्य श्री राम मंदिर बनाने के लिए आंदोलन की तैयारी शुरू कर दी । अयोध्या से चलकर देश भर में रामशिला पूजन का कार्यक्रम रखा गया। हथछोया मे भी सन 1989 मे रामशिला का बैंड बजे के साथ पूजन किया गया। 30 अक्तूबर 1990 को विश्व हिन्दू परिषद ने अयोध्या में राम मंदिर निर्माण हेतु कारसेवा के प्रारम्भ की घोषणा कर दी। पूरे देश मे तनाव का माहौल था। कुछ शरारती तत्वों ने गाँव का भी महोल खराब करने का प्रयास किया लेकिन हमारे प्रयासों के आगे उनकी कोसिशे बेकार सिद्द हुई। गाँव मे शांति बहाल रही। अयोध्या मे कारसेवकों पर गोली चला दी गई जिसमे कई कारसेवक शहीद हो गए जिनमे मे कोठारी बंधुओं का बलिदान विशेष चर्चा का विषय बना। पुनः 6 दिसंबर 1992 को कारसेवा की तैयारी विश्व हिन्दू परिषद ने शुरू कर दी थी। गाँव से संजय सिंह दिलावरे, उदेश शर्मा पुत्र मँगत, मांगेराम शर्मा पुत्र चमन सिंह एवं उमाशंकर पुत्र मास्टर भगवती प्रसाद शर्मा 30 नवंबर 1992 को कारसेवा के लिए अयोध्या के लिए रवाना हुए। 2 दिसंबर तक इन करसेवकों का जत्था लखनऊ पहुँच गया जिसे उसी दिन विधान सभी के पास गिरफ्तार करके आलम बाग जेल भेज दिया गया। 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या स्थित विवादित ढांचा गिरा दिया गया। वास्तव मे करसेवकों द्वारा 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में जो विवादित ढांचा गिराया गया था वह एक मंदिर ही था क्योंकि उस समय पर उस ढांचे के अंदर भगवान राम की मूर्तियाँ ही विराजमान थी। ऐसे मे उसे मस्जिद या अन्य कोई धार्मिक स्थल नहीं माना जा सकता है। देश के सौहार्दपूर्ण वातावरण को बिगाड़ने के लिए ही कुछ शरारती तत्वों ने उस विवादित ढांचे को मस्जिद के रूप में प्रचारित किया गया। 8 दिसंबर 1992 को आलम बाग जेल में कैद करके रखे गए सभी कारसेवकों को रिहा कर दिया गया। रिहा होने के बाद ये लोग सीधे अयोध्या पहुंचे जहां सरयू में स्नान एवं रामलला के दर्शन के बाद गाँव में सकुशल वापस लौट आए। इस प्रकार अयोध्या में हथछोया ने अपना प्रतिनिधित्व दर्ज कराया।
कक्षा 5 तक आते आते मेरी शाखा पूरे मेरठ क्षेत्र में प्रसिद्द हो चुकी थी। मुझ पर शाखा कार्य कि इतनी धुन सवार थी कि आँधी,बारिश तूफान कुछ भी रहा हो, मेरे साथ कोई रहा हो या न रहा हो, मैंने अकेले ही शाखा लगाकर,ध्वज-प्रणाम किया,प्रार्थना की और घर आ गया।
कक्षा 10 तक मैंने गाँव मे ही रहकर पढ़ाई की। कक्षा 10 की परीक्षा के दौरान लगभग एक महीने मै ऊन मे खुशीराम जी के घेर वाले मकान में रहा । यहाँ मैंने और उनके छोटे बेटे अनिल ने कक्षा 10 की परिक्षा सन 1992 मे एक साथ दी। हमारा परीक्षा केंद्र झिंझना के राष्ट्रीय शिक्षा सदन इंटर कालेज मे था।हम सुबह 4 बजे तांगे मे बैठकर झिंझना जाते और परीक्षा मे शामिल होते। मैंने प्रथम श्रेणी के साथ यह परीक्षा पास की।
कक्षा 10 पास करने तक मैंने गाँव में खूब सामाजिक कार्य किया। हम लगभग हर महीने सह-भोज का कार्यक्रम रखते थे जिसमे शाखा पर आने वाले सभी स्वयंसेवकों के घर से खाना मंगाया जाता था। इस खाने को एक बड़े बर्तन मे मिलाकर रखा जाता और फिर पंगत में बैठकर सभी सहभागियों को भोजन मंत्र के बाद भोजन कराया जाता था। भोजन सभी जातियों के स्वयसेवकों के घर से आता था। अतः जब उस समस्त भोजन को एक जगह मिलकर सभी को खिलाया जाता था तो इससे सामाजिक समरसता का स्वाभाविक अहसास होता था। ये ऐसी घटनाएँ थी जिनहोने मेरे स्वभाव,चरित्र और सोच को अत्यधिक प्रभावित किया। मैंने कभी जाति-गौत्र सूचक शब्द का अपने नाम के साथ प्रयोग नहीं किया। जातीय भावनाएं कभी मेरे चरित्र का हिस्सा नहीं बन पाई।
बड़े भाई दसवीं कक्षा से ही गाँव से ऊन चले गए थे। राममंदिर आंदोलन के सक्रिय सहभागी रहे मेरे बड़े भाई संजय सिंह दिलावरे। सन 1986 मे रामजानकी रथ यात्रा से लेकर 1990 मे अयोध्या मे कारसेवा तक हर कार्यक्रम में वह शामिल रहे। 1990 में अयोध्या कारसेवा में जाते समय संजय सिंह औरु उनकी मंडली को लखनऊ मे गिरफ्तार कर लिए गया, जहां ये लोग लगभग एक माह तक जेल मे बंद रहे। राम-मंदिर आंदोलन से हमारा जुड़ाव सांसकृतिक था। इसने कभी भी मेरे परिवार के मन मे कट्टरता या मुस्लिम विरोध की भावना जाग्रत नहीं होने दी। 30 अक्तूबर 1990 को लेकर पूरे भारत मे तनाव का माहौल व्याप्त था, हमारा गाँव हथछोया भी तनाव की उस बेला से अछूता नहीं था। 30 अक्तूबर 1990 को संजय सिंह लखनऊ जेल में बंद थे । मैं और मेरे पिताजी श्री प्रेम सिंह ने उस समय गाँव मे घूम-घूम कर लोगों से शांति बनाए रखने की अपील की । हमारे साथ इस पवित्र कार्य में अश्वनी जी , रवीन्द्र जी, आदि अन्य मित्रों ने भी साथ दिया। यह मेरे गाँव की सांझी-सांसकृतिक विरासत का ही परिणाम था कि गाँव के मुस्लिम समाज ने शांति कि रक्षा के लिए हमे पूरा सहयोग किया। यद्यपि कुछ शरारती तत्वों ने उस समय शांति भंग करने की कोशिश की थी लेकिन शांतिप्रिय हिन्दू और मुसलमानों ने उनके मंसूबों को असफल कर दिया। हम सबने ऊन दिनों रात को जागकर गलियों मे पहरा दिया और गाँव की शांति की रक्षा की।
संजय सिंह, अपने जमाने में गाँव की रामलीला के एक सुपरहिट कलाकार भी रहे है। “अमर सिंह राठौर” के चरित्र पर आधारित एक नाटक गाँव की रामलीला का हिस्सा रहा है। इस नाटक मे गरीब बाप का एक शालीन बेटा नबी-रसूल होता है, जिसका चरित्र अनेक वर्षों तक उन्होंने बड़े ही शानदार अंदाज़ में निभाया। कई वर्षों तक गाँव की रामलीला में लक्ष्मण का पाठ भी उन्होने ही ने निभाया है।
कक्षा 10 के बाद संजय झिझाना राष्ट्रीय शिक्षा सदन इंटर कालेज में पढ़ने चले गए और वहीं किराये पर कमरा लेकर रहने लगे, उनके साथ ही मनीष पुत्र सोमदत्त शर्मा जी भी रहे। उस समय आस-पास के क्षेत्र में सिर्फ तीतरों, थानाभवन,ऊन एवं झिंझाना में ही इंटर कालेज थे । संजय भाई ने बड़ी मेहनत और लगन के साथ अपनी पढ़ाई की। 1992 में वह लेखपाल (पटवारी) के पद पर चयनित हो गए। हथछोया गाँव से लेखपाल के पद पर चयनित होने वाले, संजय सिंह तोमर पहले व्यक्ति थे। वर्ष 2017 तक इस पद पर गाँव से किसी का चयन नहीं हुआ है। विनम्रता के मामले में उनका कोई जवाब नहीं है, सहनशीलता और धैर्य उनमें कूट-कूट कर भरा हुआ है।

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