दादा अब्दुल्ला एंड कंपनी का मुकदमा लड़ने यदि मोहनदास करमचंद गांधी दक्षिण अफ्रीका नही जाते तो संभवतः भारत को "महात्मा" के रूप में एक गांधी नही मिलता और दुनिया गांधीवाद के शांतिवादी दर्शन से वंचित रह जाती।जिस "सत्याग्रह" पद्दत्ति को गांधी जी ने ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ प्रयोग करके "सूर्यास्त रहित" साम्राज्य की चूलें हिला दी,भारत उससे भी सम्भवतः वंचित रह जाता।
अफ्रीका पहुंचे मोहनदास:
अपनी कंपनी का मुकदमा लड़ने के लिए भारतीय मूल के दक्षिण अफ्रीकी नागरिक सेठ अब्दुल्ला ने 1893 में गांधी जी को दक्षिण अफ्रीका बुलाया था। उनका बुलावा स्वीकार करके मोहनदास दक्षिण अफ्रीका के लिए रवाना हो गए।
गांधी जी लंबी जलयात्रा करके दक्षिण अफ्रीका के डरबन नगर में पहुंचे। डरबन से उन्होंने प्रिटोरिया गमन के लिए 7 जून 1893 को ट्रेन पकड़ी।उन्होंने प्रथम श्रेणी यात्रा करने के लिए टिकट खरीदा था।लेकिन पीटरमारिट्जबर्ग पहुंचने पर मोहनदास को सहयात्रियों द्वारा, जिनमे प्रायः सभी ब्रिटिश नागरिक थे, रेल के तृतीय श्रेणी यान में जाने के लिए कहा गया। गांधी जी ने अपना प्रथम श्रेणी रेल टिकट सह-यात्रियों को दिखाते हुए, तृतीय श्रेणी रेल यान में जाने से स्पष्ट मना कर दिया गया।इसके बाद जो मोहनदास के साथ घटित हुई उसने उस इकहरे बदन वाले मोहनदास करमचंद गांधी को "महात्मा गांधी" बनने वाले मार्ग पर अग्रसर कर दिया।सह-यात्रियों ने मोहनदास को प्रथम श्रेणी रेल यान से जबरन धक्का देकर ट्रेन से नीचे गिरा दिया।यह घटना विश्व इतिहास में ऐतिहासिक घटना के रूप में दर्ज होने वाली थी,विश्व इतिहास को इसका साक्षी बनना था।इस घटना ने मोहनदास को अंदर तक झकझोर दिया।उन्हें अंदर तक आंदोलित कर दिया।खुद को सहज करते हुए मोहनदास खड़े हुए और कड़ाके की ठंड में पीटरमारिट्जबर्ग स्टेशन के वेटिंग रूम में पहुंचे।गांधी जी का अंतर्मन इस अन्यायपूर्ण घटना को लेकर उद्वेलित था।पूरी रात वह सो नही सके। वह रातभर सोचते रहे कि क्या दक्षिण अफ़्रीका में मैं यह भेदभाव सहन कर पाऊंगा? क्या मुझे भारत वापस लौट जाना चाहिए? लेकिन क्या भारत में भी मुझे यही सब नही सहन करना पड़ेगा? क्या दक्षिण अफ्रीका में रह रहे भारतीयों पर हो रहे अन्याय के खिलाफ मुझे संघर्ष करना चाहिए?
सुबह होने तक बीती रात 7 जून 1893 को दक्षिण अफ्रीका के पीटरमारिट्जबर्ग में हुए अपमान जनक व्यवहार ने एक नए गांधी को जन्म दिया जो दुनिया को एक नई संघर्ष पद्दत्ति "सत्याग्रह" एवं इसकी शक्ति से परिचित कराने वाला था।दक्षिण अफ्रीका के इस शहर से ही गांधी जी के सत्याग्रह की नींव पड़ चुकी थी। उस समय स्वयं मोहनदास करम चंद गांधी नहीं जानते थे कि उनका यही हथियार कभी भारत की आजादी का रास्ता मार्ग प्रशस्त करके अंग्रेजी साम्राज्य का सूर्यास्त कर देगा!
अपमान के कई घूंट:
दक्षिण अफ्रीका में भेदभाव सहन करने की पीटरमारिट्जबर्ग की घटना गांधी जी के अफ्रीकी प्रवास की ऐसी पहली और अकेली घटना नही थी जब उनको अपमान और भेदभाव सहन करना पड़ा हो। इसके अतिरिक्त भी गांधी जी को दक्षिण अफ्रीका में कई बार भेदभाव का सामना करना पड़ा था। एक बार उन्हें घोड़ागाड़ी में अंग्रेज यात्री के लिए सीट नहीं छोड़ने पर पूरी यात्रा पायदान पर बैठकर करने के अलावा घोड़ा गाड़ी के चालक से मार भी खानी पड़ी थीI।
एक मुकदमा लड़ने गए मोहनदास अगले लगभग 21 वर्षो तक दक्षिण अफ्रीका में ही रह जाएंगे यह कभी खुद उन्होंने स्वप्न में भी नही सोचा था।गांधी जी प्रवासी भारतीयों के बीच उनकी निस्वार्थ सेवा एवं व्यवहार के कारण बेहद लोकप्रिय हो गए।दक्षिण अफ्रीकी प्रवासी भारतीयों ने भेदभाव के विरुध्द संघर्ष में गांधी जी को अपना नेतृत्व सौंप दिया।अफ्रीका में उतपन्न परिस्थितियों ने गांधी जी को यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि अभी उनका कार्य पूरा नही हुआ है। दक्षिण अफ्रीका में उनके प्रवास की अवधि शायद अनिश्चित है।इसी बात को ध्यान में रखकर सन् 1896 के मध्य में वह पत्नी कस्तूरबा गांधी को अपने साथ अफ्रीका ले जाने के लिए भारत आये ताकि अफ्रीकी भारतीयों के दुख दूर करने के लिए एक ऐसा संघर्ष किया जा सके जो उनके संकटों को उनकी अंतिम परिणति तक ले जाकर स्थाई सुकून दिला सके।गांधी जी स्वयं को भारत की स्वतंत्रता के भावी संघर्ष के लिए दक्षिण अफ्रीका में प्रवासी भारतीयों के लिए संघर्षरत करके तपा भी लेना चाहते थे।
फिर से दक्षिण अफ्रीका में
राजकोट पहुंचकर गांधी जी ने भावी संघर्ष के लिए चिन्तन किया एवं रणनीति बनाई।वे संघर्ष को व्यवस्थित ढंग से करना चाहते थे।इसलिए राजकोट में उन्होंने प्रवासी भारतीयों की समस्या का विश्लेषण करते हुए एक पुस्तक लिखी जिसे प्रकाशित करवाकर देश के प्रबुद्ध लोगों को भेंट करने के साथ साथ प्रमुख समाचार पत्रों में भी प्रकाशनार्थ उसकी प्रतियाँ भेजी। तभी राजकोट शहर में प्लेग का प्रकोप फैल गया जिसने शीघ्र ही महामारी का रूप ले लिया।
यह गांधी जी के लिए मानवसेवा का आदर्श प्रस्तुत करने का एक ऐसा अवसर था जिसने उनकी छवि में एक सकारात्मक परिवर्तन किया।गांधी जी ने प्लेग पीड़ितों के लिए स्वयंसेवक बनकर सेवाएं अर्पित की।गांधी जी ने हजारों वर्षों से दबे कुचले दलित समाज के लोगों के बीच रहकर सेवा एवं संवाद के माध्यम से सामाजिक दूरियां छुआछूत एवं भेदभाव दूर करने के लिए भारतीयों को एक सकारात्मक संदेश दिया।गांधी जी की लोकप्रियता भी बढ़ने लगी।
बदरुद्दीन तैय्यब, सर फिरोजशाह मेहता, सुरेंद्रनाथ बेनर्जी, लोकमान्य जिलक, गोपाल कृष्ण गोखले जैसे तत्कालीन राष्ट्रीय नेताओं से गांधी जी ने भेंट की जिसका उनके स्वयं के व्यक्तित्व पर गहरा प्रभाव पड़ा। गांधी जी ने इन सभी राष्ट्रीय नेताओं को दक्षिण अफ्रीकी प्रवासी भारतीयों की समस्याओं से अवगत करवा।बम्बई में फिरोजशाह मेहता की अध्यक्षता में एक कार्यक्रम हुआ जिसमें गांधी जी ने दक्षिण अफ्रीकी भारतीयों की समस्याएं से राष्ट्रीय नेतृत्व को अवगत कराया।ऐसा ही कार्यक्रम कोलकाता में भी तय था लेकिन गांधी जी उसमे उपस्थित होते उससे पहले ही दक्षिण अफ्रीका से एक आपात तार उंन्हे प्राप्त हुआ और वे फिर दौड़ चले दक्षिण अफ्रीका की और वहां प्रवासी भारतीयों को किया गया अपना वायदा निभाने के लिए।
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