इस्लाम: खोखला है वैश्विक भ्रातत्ववाद नारा
@ सुनील सत्यम
शिया
शिया मुसलमानों का एक पंथ है जिसकी मान्यताएं सुन्नी मुसलमानों से काफी अलग है।शिया सुन्नियों में पैगम्बर मुहम्मद साहब की मौत के बाद से ही नफरत की जंग चली आ रही है जिसका निकट भविष्य में कोई अंत दिखाई नही देता है। शियाओं के मज़हबी क़ानून सुन्नियों से लगभग भिन्न हैं।मज़हबी मामलों में शिया मुस्लिम काफी उदार और सेकुलर ख्याल के है। शिया पंथी पैग़म्बर मोहम्मद के बाद ख़लीफ़ात की बजाय इमाम नियुक्त किए जाने के समर्थक हैं।
उनका मानना है कि पैग़म्बर मोहम्मद साहब ने मौत से पहले अपने दामाद हज़रत अली को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया था। लेकिन धोखे से उनकी जगह हज़रत अबू-बकर को कुछ लोगों ने षडयंत्र के तहत मुस्लिमों का नेता घोषित कर दिया।
शिया मुसलमान पैगम्बर की मौत के बाद बने पहले तीन ख़लीफ़ाओं को अपना नेता नहीं मानते बल्कि उन्हें ग़ासिब कहते हैं। ग़ासिब अरबी भाषा का शब्द है जिसका शाब्दिक अर्थ हड़पने वाला होता है।
शियाओं का विश्वास है कि जैसे अल्लाह ने मोहम्मद साहब को अपना पैग़म्बर बनाकर भेजा था उसी तरह से उनके दामाद अली को भी अल्लाह ने ही इमाम या नबी नियुक्त किया था और उनके बाद उन्हीं की संतानों से इमाम पैदा होते रहे।
कालांतर में शियाओं का भी कई पंथों में विभाजन हो गया।प्रमुख शिया पन्थ इस प्रकार हैं:
इस्ना अशरी
शियाओं का सबसे बड़ा पन्थ इस्ना अशरी यानी बारह इमामों को मानने वाला समूह है। बहुसंख्यक शिया इसी पंथ के अनुयायी है। इस्ना अशरी समुदाय का कलमा भी सुन्नियों के कलमें से बिल्कुल अलग है।
उनके पहले इमाम हज़रत अली हैं और अंतिम यानी बारहवें इमाम ज़माना यानी इमाम महदी हैं। वो अल्लाह, क़ुरान और हदीस को तो मानते हैं परन्तु केवल उन्हीं हदीसों को सही मानते हैं जो उनके इमामों के माध्यम से आए हैं।
अली के उपदेश पर आधारित किताब "नहजुल बलाग़ा" और "अलकाफ़ि" इस्ना अशरी शियाओं की महत्वपूर्ण धार्मिक पुस्तक हैं यह संप्रदाय इस्लामिक धार्मिक क़ानून के अनुसार जाफ़रिया में विश्वास रखता है। ईरान, इराक़, भारत और पाकिस्तान सहित दुनिया के अधिकांश देशों में इस्ना अशरी शिया समुदाय का ही बाहुल्य है।
ज़ैदिया
शियाओं का दूसरा सबसे बड़ा सम्प्रदाय ज़ैदिया है, यह बारह के स्थान पर मात्र पांच इमामों को ही मान्यता देता है। जिनमे पहले चार इमाम वही है जिन्हें इस्ना अशरी शियों भी मानते हैं। लेकिन इनके पांचवें इमाम हुसैन (हज़रत अली के बेटे) के पोते ज़ैद बिन अली हैं।ज़ैद के नाम पर ही यह सम्प्रदाय ज़ैदिया नाम से जाना जाता है।
ज़ैद बिन अली द्वारा लिखित पुस्तक 'मजमऊल फ़िक़ह' ज़ैदिया सम्प्रदाय के इस्लामिक कानूनों का आधार है। मध्य पूर्व के यमन में रहने वाले "हौसी" लोग ज़ैदिया शिया मुसलमान हैं.
इस्माइली शिया
यह शिया सम्प्रदाय सात इमामों को मान्यता देता है।इनके सातवें इमाम मोहम्मद बिन इस्माइल हैं जिनके नाम पर ये इस्माइली कहलाते हैं। इमाम जाफ़र सादिक़ के बाद उनके बड़े बेटे इस्माईल बिन जाफ़र इमाम होंगे अथवा दूसरे बेटे मूसा काज़िम, इस विषय को लेकर इनमें इस्ना अशरी शियाओं के साथ मतभेद है।
इस्ना अशरी सम्प्रदाय ने जाफर ईमाम के दूसरे बेटे मूसा काज़िम को इमाम माना है। इस्माइल बिन जाफ़र को इस्माइली शिया, अपना सातवाँ ईमाम मानते है।उनकी फ़िक़ह और कुछ मान्यताएं भी इस्ना अशरी शियों से काफी भिन्न हैं।
दाऊदी बोहरा
बोहरा भी शियाओं का एक पंथ है।यह दाऊदी बोहरा कहलाता है।अन्य शिया मुसलमान पंथों के विपरीत यह पंथ 21 इमामों को मान्यता देता है।इस्माइली शिया फ़िक़ह को मानता है और इसी विश्वास पर क़ायम है।
इनके अंतिम इमाम तैयब अबुल क़ासिम थे जिसके बाद आध्यात्मिक गुरुओं की परंपरा शुरू की गई। इन गुरुओं को दाई कहा जाता है।इस पंथ के 52वें दाई सैय्यदना बुरहानुद्दीन रब्बानी थे। 2014 में रब्बानी के निधन के बाद से उनके दो बेटों में उत्तराधिकार को लेकर विवाद हो गया जो अब अदालत में विचाराधीन है.
बोहरा शिया भारत के पश्चिमी क्षेत्र ख़ासकर गुजरात और महाराष्ट्र में पाए जाते हैं जबकि पाकिस्तान और यमन में भी इनकी उपस्थिति मिलती है।बोहरा सफल व्यापारी समुदाय है,कुछ बोहरा सुन्नी भी हैं।
खोजा
खोजा गुजरात का एक व्यापारी समुदाय है जिसने कुछ सदी पहले इस्लाम स्वीकार किया था. इस समुदाय के लोग अधिकांश शिया है।भारत विभाजन का जनक मुहम्मद अली जिन्नाह एक खोजा शिया मुस्लिम था जिसने सुन्नियों पर राज किया।
भारतीय मुस्लिम समाज को आधुनिक शिक्षा से हटाकर मदरसा शिक्षा की तरफ मोड़ने के लिए जिन्नाह के अपने स्वार्थ थे।जिन्नाह भारतीय मुसलमानों को कट्टर बनाये रखना चाहता था क्योंकि वह खुद शिया था।आम मुस्लिम उसकी असलियत जानकर कहीं उसका नेतृत्व स्वीकार करने से इनकार न कर दे इसलिए वह भारतीय मुसलमानों को उनकी सांस्कृतिक जड़ों से काटकर उंन्हे कट्टर बनाने का हिमायती था।और ऊनी चाल में वह सफल भी हुआ।दुनिया के सबसे बड़े इस्लामी देश इंडोनेशिया में मुस्लिम आज भी भगवान श्रीराम को अपना पूर्वज मानता है लेकिन भारत के मुसलमानों को इस सांस्कृतिक अलगाव के लिए जिन्नाह ने ही पृष्ठभूमि तैयार की थी।
ज़्यादातर खोजा इस्माइली शिया के धार्मिक क़ानून का पालन करते हैं लेकिन एक बड़ी संख्या में खोजा इस्ना अशरी शियाओं की भी है।
लेकिन कुछ खोजे सुन्नी इस्लाम को भी मानते हैं। इस समुदाय का बड़ा वर्ग गुजरात और महाराष्ट्र में पाया जाता है। पूर्वी अफ्रीकी देशों में भी ये बसे हुए हैं।
नुशैरी अथवा अलावी
शियाओं का यह संप्रदाय सीरिया और मध्य पूर्व के विभिन्न क्षेत्रों में पाया जाता है। इसे अलावी अथवा " अल्वी" के नाम से भी जाना जाता है। सीरिया में इसे मानने वाले ज़्यादातर शिया हैं और देश के राष्ट्रपति बशर अल असद का संबंध इसी समुदाय से है।
इस समुदाय का मानना है कि अली वास्तव में भगवान के अवतार के रूप में दुनिया में आए थे उनकी फ़िक़ह इस्ना अशरी में है लेकिन विश्वासों में मतभेद है। नुसैरी पुर्नजन्म में भी विश्वास रखते हैं और ईसाइयों की कुछ रस्में भी उनके धर्म का हिस्सा हैं।
इन सबके अलावा भी इस्लाम में कई छोटे छोटे पंथ पाए जाते हैं।एक पंथ दूसरे को काफिर अथवा मुनाफिक मानता है और उसका सम्पूर्ण सफाया करके ख़ुद को मुहम्मद का सच्चा समर्थक साबित करना चाहता है।सुन्नी मुस्लिम, शिया सम्प्रदाय को काफिर मानकर उनका उन्मूलन कर देना चाहते हैं।दुनिया के किसी भी अन्य मज़हब से ज्यादा धार्मिक विभेद एवं कटुता इस्लाम के अनुयायियों में है जो एक दूसरे सम्प्रदाय से बेइंतहा नफरत करते हैं।
अफ्रीका में सोमालिया,नाइजीरिया,इथोपिया,सूडान आदि देशों से लेकर सीरिया,ईरान,इराक,लीबिया,पाकिस्तान एवं अफगानिस्तान तक इस्लामी फिरकों में नफरत की अंतहीन जंग जारी है जिसमे गत 10 वर्षों में सोलह लाख से ज्यादा मुसलमानों की मुसलमानों द्वारा हत्या की जा चुकी है।वैश्विक भ्रातत्ववाद का इस्लामी नारा नफरत की जंग में खोखला साबित होता जा रहा है।
(प्रस्तुत लेख में लेखक की निजिराय है)
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