हड़प्पा-अधिशेष अर्थव्यवस्था
हड़प्पा सभ्यता का पतन अभी तक विवाद का एक प्रश्न बना हुआ है। कोई भी इतिहासकर इसके पतन का तार्किक कारण निर्धारित नहीं कर पाया है। इतना ही नहीं हड़प्पा सभ्यता के पतन से ही एक अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न जुड़ा हुआ है- क्या हड़प्पा सभ्यता का विनाश हुआ था या इसका नगरीकरण से पुनः ग्रामिणीकरण हुआ था अर्थात क्या हड़प्पा सभ्यता का एक नगरीय सभ्यता से ग्रामीण संस्कृति मे रूपान्तरण हुआ था?
परिपक्व हड़प्पा सभ्यता 2600 ई॰पू॰ से 1900 ई॰पू॰ के बीच फली-फूली। प्रारम्भिक हड़प्पा सभ्यता से विकसित हड़प्पा सभ्यता तक की विकास यात्रा कृषि-अधिशेष (Surplus Produce) से पूर्णतः प्रभावित प्रतीत होती है। यध्यपी अनेक विद्वानों ने हड़प्पा सभ्यता के उद्भव का बड़ी आसानी से सधारणीकरण कर दिया है ।उनके अनुसार ग्रामीण कृषकों द्वारा उत्पादित अधिशेष उत्पादन कर एवं नजराने के रूप मे नगरों में पहुंचता था जिसका शासक वर्ग अपने अनुसार प्रयोग करता था। इतिहासकर इरफान हबीब के अनुसार “कांसे के हथियारों ने शहरी शासक वर्ग को पत्थरों के हथियार प्रयोग करने वाले ग्रामीणों की अपेक्षा अधिक शक्तिशाली बना दिया। ग्रामीण लोग शासकों को कर एवं नज़राना अधिशेष के रूप चुकाने के लिए बाध्य कर दिये जाते थे। बाद में शासक, प्राप्त अनाज एवं अन्य अधिशेष उत्पादन को अपने अधिकारियों, कर्मचारियों तथा नौकरों के बीच वितरित कर देते थे।इस प्रकार ग्रामीण अधिशेष का हिस्सा नगरीय व्यापारियों, मजदूरों एवं शिल्पियों को शासक एवं उसके आश्रितों द्वारा सेवाओं एवं सामानों के बदले स्थानांतरित हो जाता था” इस प्रकार हबीब ने अधिशेष उत्पादन के आर्थिक एवं राजनीतिक आधारों पर जरूरत से ज्यादा ज़ोर दिया है।
इरफान हबीब की अधिशेष संबंधी अवधारणा को ज्यों का त्यों स्वीकार नहीं किया जा सकता है। इसको निम्न तथ्यों की कसौटी पर परखना जरूरी है।
हबीब की कांसे के हथियारों की भूमिका संबंधी अवधारणा।
नगरीय शासक वर्ग की सैन्य-योग्यता, प्रभुसत्ता एवं राज्य तत्व की उपस्थिती।
अधिशेष हड़पने की व्यवहरिकता एवं वस्तुस्थिति।
अधिशेष का प्रयोग।
उपरोक्त बिन्दुओं की तटस्थ पड़ताल हमें हड़प्पा सभ्यता के नगरों के उदय की पृष्ठभूमि मे अधिशेष अर्थव्यवस्था की भूमिका एवं इसके महत्व को समझने मे मदद कर सकती है।
जहां तक हड़प्पा निवासियों द्वारा हथियारों के प्रयोग की बात है , हड़प्पाई स्थलों से नाम मात्र के ही हथियार मिले हैं। हड़प्पा निवासियों के पास बहुत हथियार नहीं थे। हड़प्पाइयों मे किसी यौद्धा वर्ग के अस्तित्व के भी बहुत स्पष्ट प्रमाण अभी तक नहीं मिले हैं। जो थोड़े बहुत कांस्य हथियार मिले भी हैं उनकी गुणवत्ता इस स्तर की नहीं है कि उनके आधार पर कोई निर्णायक युद्ध जीता जा सके। किसी भी हड़प्पाई स्थल से अभी तक किसी बड़ी आयुध निर्माणी का कोई पुरातात्विक साक्ष्य प्राप्त नहीं हुआ है जो इस बात का संकेत है कि हड़प्पाइयों का सैन्य अभियानों के प्रति विशेष रुझान नहीं था। इसका एक प्रमुख कारण यह भी हो सकता है कि सिंधु/सरस्वती के विशाल क्षेत्र में स्वयं कि सत्ता मजबूत करने के बाद अब हड़प्पाइयों का ध्यान अपनी सत्ता को शांति एवं व्यापार के माध्यम से सुदृढ़ करना रहा हो। सुत्कागेंडोर, कोटाडीजी, मांडा, बनावाली, आदि स्थलों से मिले कुछ बाणाग्र तथा देसलपुर से प्राप्त तांबे कि कुछ छुरियों के आधार पर यह निष्कर्ष नहीं निकाला जाना चाहिए कि इन हथियारों कि सहायता से नगरिया शासक वर्ग अपेक्षाकृत अधिक बर्बर एवं शक्तिशाली ग्रामीणों को कर एवं नज़राना चुकाने के लिए बाध्य कर पाया हो !
नगरीय शासक वर्ग की सैन्य योग्यता, प्रभुसत्ता एवं उस समय राज्य तत्व का अस्तित्व स्वयं मे संदेहास्पद है। नगरीकरण के उदय तथा गैर-कृषि वर्गों के विकास ने आज की भांति उस काल के मानव को भी संभवतः अधिक कोमलांगी तथा आराम पसंद बना दिया होगा। उनके झुझारूपन एवं लड़ाकू प्रवृत्ति मे भी संभवतः इससे कुछ कमी आई होगी। इसके विपरीत ग्रामीण परिवेश का तत्कालीन मानुष अधिक लड़ाकू, झुझारू तथा पत्थर के प्रक्षेपात्रों को चलाने में अधिक निपुण रहा होगा। ऐसे में शहरी शासक वर्ग द्वारा ग्रामीणों को ताम्र हथियारों के बल उनकी मेहनत की कमाई का अधिशेष उत्पादन, कर के रूप में दिये जाने के लिए बाध्य कर दिये जाने का तर्क असंभव सा प्रतीत होता है। किसी हड़प्पाई स्थल से अस्थाई या स्थायी सेना के अस्तित्व के भी पुरातात्विक साक्ष्य प्राप्त नहीं होते हैं जिसके आधार पर यह माना जा सके कि सैन्य बल के दम पर शासक वर्ग ग्रामीणों से अधिशेष उत्पादन हड़पने मे सफल हो पाया हो। सुरकोटड़ा से प्राप्त पत्थर के हथियारों का ढेर तथा यौद्धा का चित्रांकन व्यवस्थित सेना की ओर संकेत हो सकता है। परंतु इस बात की संभावना अधिक है कि यदि इस प्रकार कि
की कोई व्यवस्थित सेना रही भी होगी तो वह दुर्ग की रक्षा हेतु एक प्रतिरक्षा टोली के रूप मे ही रही होगी।
हड़प्पा सभ्यता एक विस्तृत भू-भाग मे फैली हुई थी। पंजाब, हरियाणा, सिंध, बलूचिस्तान, गुजरात, राजस्थान तथा पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अनेक हड़प्पाई स्थल मिले हैं। उत्तर मे शिवालिक से लेकर दक्षिण में अरब सागर तक तथा पश्चिम मे बलूचिस्तान के मकरान तट से लेकर पूर्व मे आलमगीरपुर (मेरठ) तक लगभग 1299,600 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में हड़प्पा सभ्यता फली-फूली। यह क्षेत्र निश्चित रूप से तत्कालीन मिश्र एवं मेसोपोटामिया के सभ्यता स्थलों से कहीं बड़ा था। तत्कालीन विश्व में हड़प्पा सभ्यता सर्वाधिक विस्तृत सभ्यता थी।अभी तक सम्पूर्ण महाद्वीप मे लगभग 2800 सभ्यता स्थल खोजें जा चुके हैं। इतने विस्तृत क्षेत्र पर तत्कालीन किसी सत्ता द्वारा नियंत्रण रख पाना लगभग असंभव प्रतीत होता है। इतने विस्तृत भू-भाग पर प्रशासनिक नियंत्रण रखना, नियम-क़ानूनों को लागू करना तथा सुदूर ग्राम्य केन्द्रों से कर एवं नज़राना वसूली की व्यवस्था सुनिश्चित कर लेना एक सुस्थापित राज्य सत्ता के बिना संभव नहीं है। सिर्फ दुर्गिकरण,अन्नागारों (कोष) तथा व्यवस्थित नगरीकरण के आधार पर एक स्थापित राज्य तत्व का अस्तित्व स्वीकार करना सही नहीं होगा। एक संप्रभु तथा एकछत्र राजसत्ता के अस्तित्व पर निम्नलिखित तथ्य प्रश्नचिन्ह लगाते हैं :
सड़कों का अभाव
परिवहन एवं संचार
घने जंगल एवं जंगली जानवरों का भय
उक्त कारकों एवं स्थायी सेना के अभाव मे अत्यधिक विस्तृत भू-भाग पर नियंत्रण संभव नहीं था। साथ ही ग्रामीणों के बर्बर प्रतिरोध के कारण उनसे अधिशेष उत्पादन कर के रूप मे नहीं हड़पा जा सकता था।
इस प्रकार उपरोक्त विश्लेषण के आधार पर अधिशेष अर्थव्यवस्था अर्थात अधिशेष उत्पादन का प्रयोग एवं वितरण, नगरों उदय मे अधिशेष उत्पादन की भूमिका, शासक वर्ग तथा उसकी भूमिका एवं स्वरूप आदि प्रश्नों पर पुनर्विचार आवश्यक है। इस पर एक नवीन दृष्टिकोणअपनाया जाना जरूरी है ताकि महान हड़प्पा सभ्यता के उदय एवं अन्य संबन्धित पहलुओं की तार्किक पड़ताल की जा सके।
अधिशेष का प्रयोग एवं वितरण
कृषि अधिशेष उत्पादन की हड़प्पाई नगरीकरण में महत्वपूर्ण भूमिका रही थी। कृषि अधिशेष ने गैर-कृषक वर्गों के उदय मे महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
जारी....
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