वनगुर्जरि बहन फातिमा की दास्ताँ..
वनगुर्जरि बहन फातिमा देधड,शाकुम्भरी खोल में रहने वाली वनगुर्जर है.इनका जीवन अत्यंत संघर्षपूर्ण है.सुबह से शाम तक आजीविका के संघर्ष में गुजरता है.इनके पास 6 भैंस है जिनके चारे पानी की व्यवस्था इनको अपने पति सैफ कसना के साथ मिलकर करनी होती है.पशुओं के लिए पानी की तो समस्या नहीं है क्योंकि पानी खोल में बहता रहता है.लेकिन चारे की समस्या बड़ी है, हालांकि पशुओं का पेट ज्यादातर चरान से ही भरना पड़ता है या पहाड़ों से चारा काटकर लाना पड़ता है जिसमे घासफूंस और पेड़ों की पत्तियां शामिल है..अक्सर वन दारोगाओं से ये परेशानी उठाते है, ऐसा बहन फातिमा ने बताया..फातिमा का पूरा दिन खाना पकाने,पानी की व्यवस्था करने और जंगल से सुखी लकड़ियाँ चुनने में लग जाता है.दिन भर में ₹ 30.00/ किलो की दर से लगभग 6-7 किलो दूध बिक जाता है जो शाकुम्भरी में रहने वाले दुकानदार खरीद लेते हैं.2 से 3 हजार रुपये की लकड़ियाँ भी जंगल से चुन कर फातिमा बहन का परिवार बेच लेता है. साल भर में वनविभाग के अधिकारियों को भी चढ़ावा चढ़ाना पड़ता है..इंधन के लिए बचाने के बाद थोड़ी बहुत लकड़ी बच जाती है, उसकी बिक्री कर देते हैं.फातिमा बहन को अभी कोई संतान नहीं है..
फातिमा बहन का जीवन बहुत संघर्ष पूर्ण है..जब मैंने सैफ से पूछा की क्या तुम जानते हो की तुम जंगलों में क्यों रहते हो ? जवाब में सैफ ने बताया की जब औरंगजेब ने सताया तो हमारे पुरखे जंगलों में चले गए..! इसके अतिरिक्त सन 1857 में गुर्जरों द्वारा किये गए विद्रोह के बाद जब ब्रिटिश भारत सरकार का दमन चक्र चला था उस समय बहुत से गुर्जर वनों में जा छुपे थे जो कभी बाहर वापस नहीं आये. सैफ ने बताया की उसने बड़ी कठिनाई से बेहट के शान्ति देवी स्कूल से 8वीं कक्षा पास की है और वह आस पास के वनगुर्जरों में सबसे ज्यादा पढ़ा लिखा है..हालांकि बहन फातिमा नहीं पढ़ पाई.लेकिन उसने वादा किया की वह अपने बच्चों को प्रेमकुल मिशन के माध्यम से खूब पढ़ाएगी..सैफ ने बताया कि अपने गौत्र में शादियाँ नहीं की जाती है. यदि कोई ऐसा कर देता है तो पंचायत उसे समाज से बाहर कर देती है.हाँ मामा की लड़की से यानी माँ के गोत्र में शादी वर्जित नहीं है..
फातिमा बहन का जीवन बहुत संघर्ष पूर्ण है..जब मैंने सैफ से पूछा की क्या तुम जानते हो की तुम जंगलों में क्यों रहते हो ? जवाब में सैफ ने बताया की जब औरंगजेब ने सताया तो हमारे पुरखे जंगलों में चले गए..! इसके अतिरिक्त सन 1857 में गुर्जरों द्वारा किये गए विद्रोह के बाद जब ब्रिटिश भारत सरकार का दमन चक्र चला था उस समय बहुत से गुर्जर वनों में जा छुपे थे जो कभी बाहर वापस नहीं आये. सैफ ने बताया की उसने बड़ी कठिनाई से बेहट के शान्ति देवी स्कूल से 8वीं कक्षा पास की है और वह आस पास के वनगुर्जरों में सबसे ज्यादा पढ़ा लिखा है..हालांकि बहन फातिमा नहीं पढ़ पाई.लेकिन उसने वादा किया की वह अपने बच्चों को प्रेमकुल मिशन के माध्यम से खूब पढ़ाएगी..सैफ ने बताया कि अपने गौत्र में शादियाँ नहीं की जाती है. यदि कोई ऐसा कर देता है तो पंचायत उसे समाज से बाहर कर देती है.हाँ मामा की लड़की से यानी माँ के गोत्र में शादी वर्जित नहीं है..
स्वामी बलादेवानंद जी ने प्रेमकुल मिशन की स्थापना की हैं जिसका उद्देश्य वनगुर्जरों के बच्चों को निशुल्क मुख्यधारा की उच्च शिक्षा उपलब्ध कराना है.स्वामी जी के मिशन के तहत ही आज हम वनगुर्जरों से मिलने, उनके दुःख बांटने यहाँ पहुंचे. प्रेमकुल मिशन के लिए स्वामी जी इस क्षेत्र में जमीन की तलाश कर रहे है.स्वामी जी के इस मिशन में मै पूर्णतः उनके साथ हूँ और आप ?
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