शनिवार, 9 अप्रैल 2016

वनगुर्जर बहन सफुरा कसाना और भाई करीम लोढ़ा की दास्तां...!

वनगुर्जर बहन सफुरा कसाना और भाई करीम लोढ़ा की दास्तां...!
--------------------------@सुनील सत्यम
सहारनपुर से वाया मिर्ज़ापुर पौंटा साहिब जाने के मार्ग में प्राचीन टिमली रियासत पड़ती है।दर्रारीट (धर्मावाला) चेकपोस्ट से ही उत्तराखंड राज्य शुरू हो जाता है।यूँ कहिये कि मिर्ज़ापुर(सहारनपुर)से थोडा आगे चलते ही हिमालय की शिवालिक श्रृंखला शुरू हो जाती है।यहाँ से आगे टिमली गाँव पड़ता है।टिमली पूर्व में एक गुर्जर रियासत थी जिसका सरदार बल्लभ भाई पटेल द्वारा भारतीय गणराज्य में सम्मिलन कर दिया गया था।
दर्रारीट चेकपोस्ट पार करके पचास कदम की दूरी पर ही एक खोल में वनगुर्जरों के करीब चार परिवार रहते हैं,इनमे से एक परिवार है भाई करीम लोधा का। करीम, लोधा गौत्र के वनगुर्जर है तो उनकी पत्नी सफूरा, कसाना गौत्र की है।करीम ने बताया कि माँ और पिता,दोनों के गौत्रों का विवाह के समय बचाव किया जाता है।ऐसा न करने वाले लोगों को हमारी जातीय पंचायत जाति से बहिष्कृत कर देती है।करीम के विवाह के समय भी उनके अपने गौत्र लोधा और मातृगौत्र बनयाने का बचाव किया गया था। सभी वनगुर्जर पूर्णतः शाकाहारी है।बक़रीद के समय भी अंडा तक नहीं खाते हैं।मीठी ईद ही मनाते है।
  करीम के संघर्ष की दास्ताँ बड़ी कठिनाइयों से भरी है।गत वर्ष किसी अज्ञात बीमारी से करीम की सभी गाय-भैसों की मौत हो गई जिससे उन्हें करीब एक लाख रुपये का नुकसान उठाना पड़ा।उसके पशु बच सकते थे यदि उन्हें तत्काल चिकित्सा सेवा मिल जाती लेकिन जंगल में पशु तो क्या मनुष्यों के लिए भी चिकित्सा सुविधा उपलब्ध नहीं है।पशुओं की अचानक मौत ने करीम परिवार की कमर तोड़ दी।आय का कोई अन्य स्रौत नहीं था,परिवार भूखों मरने के कगार पर आ गया तो करीम ने राज-मिस्त्री का काम सीखा।शुरुआत में बहुत कम मजदूरी मिलती थी लेकिन अब ₹ 500 प्रतिदिन मजदूरी मिल जाती है महीने में औसतन 12 से 15 दिन काम मिलता है।उसी से परिवार चलाना पड़ता है।
"यह क्षेत्र उत्तराखंड राज्य में आता है।सरकारी तौर पर कोई मदद नहीं मिलती है।स्थानीय विधायक ने इन्हें एक सोलर लाइट जरूर दी है"
करीम ने बताया कि हमारे लगभग 700-800 वोट है लेकिन फिर भी कोई हमारी सुध नहीं लेता है।
कभी भी जंगली हाथी आ जाते है जो डेरे को काफी नुकसान पहुंचा देते है,जिंदगी पुनः शुरू करनी पडती है। करीम कभी पढाई नहीं कर पाये है।सफूरा भी पढ़ी लिखी नहीं है।कारण है कि यह पर्वतीय जंगली इलाके में रहते है जहाँ शिक्षा व्यवस्था नहीं है।लेकिन करीम और सफूरा अपने बच्चों को पढ़ाना चाहते है।इनकी 3 बेटियां है जिनमे सबसे बड़ी का नाम आमना है जो कक्षा 4 में पढ़ती है।उससे छोटी फातिमा है जो कक्षा 2 में है तथा तीसरी ने अभी स्कूल जाना शुरू नहीं किया है।
करीम अपने विधायक और सांसद का नाम नहीं जानते है।प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी का नाम उन्होंने काफी सुना है।पूछने पर करीम ने बताया कि मोदी जी अच्छा भाषण देते है और वह काम भी बहुत अच्छे कर रहे है लेकिन अफसर लोग हम गरीबों तक उन अच्छे कामों को नहीं पहुंचने देते है। जंगली जीवन में उन्हें अभी अच्छे दिनों के आने को बहुत ज्यादा उम्मीद नहीं है।करीम को पता है कि सरकार गरीबों के लिए मकान बना कर देती है,लेकिन वह गरीब भी उनकी नजर में मैदानी सुगम जीवन जीने वाले ही हैं।करीम को इस बात का पछतावा है कि एक बार उन्हें सरकार से जमीन का पट्टा और घर मिलने वाला था लेकिन उनके अब्बा मरहूम इससे वंचित रह गए।करीम की दिली इच्छा है कि उनके भी "अच्छे दिन" आएं और वह जंगली से सभ्य मानव जीवन में प्रवेश कर सके। उनको उम्मीद है कि मोदी की जितनी तारीफ उन्होंने सुनी है उसके हिसाब से उन्हें भी कुछ न कुछ अच्छे दिन देखने को मिलेंगे।
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प्रेमकुल मिशन ट्रस्ट वनगुर्जरों के उत्थान के लिए प्रयासरत है।आज मिशन टीम ने अपने वनगुर्जर बंधुओं का दर्द बांटने के लिए दौरा किया और मामूली सहायता भी प्रदान की।

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