महाभीम,जयभीम,छोटाभीम,सुपरभीम
--------------------------@सुनील सत्यम
डॉ भीमराव अम्बेडकर को हिंदुस्तान में सिर्फ अपने मतलब भर के लिए समझा गया।"अम्बेडकर अपने ज़माने का आश्चर्य थे।" तमाम विपरीत परिस्थितयों के बावजूद उन्होंने न केवल अपनी सार्थकता को सिद्ध किया वरन कांग्रेस जैसे विशाल संगठन के लिए वह एक बड़ी मजबूरी बन गए।
स्वतंत्रता संघर्ष के दो ऐसे बड़े नाम है जिनसे कांग्रेस हमेशा भयभीत रही और उन्हें कभी अपना अध्यक्स नहीं बनने दिया,ये दो महान हस्तियां थी लोकमान्य तिलक और डॉ अम्बेडकर।
डॉ साहब ने बाल्यकाल से छुआछूत का दंश झेला और वह इस बात से आहत थे कि छुआछूत और जाति व्यवस्था का उन्मूलन आज़ादी की लड़ाई के कांग्रेसी अजेंडे में नहीं थे।कांग्रेस की चिंता में मुस्लिम अधिक थे इसलिए कांग्रेस ने 1916 में लखनऊ में मुस्लिम लीग के साथ "लखनऊ पैक्ट"किया जिसमे मुसलमानों के लिए मिंटो-मॉर्ले क8 मंशानुरूप पृथक निर्वाचन क्षेत्र की मांग स्वीकार कर ली।लखनऊ पैक्ट ही वह पहला बड़ा ऐतिहासिक विकास था जो भारत विभाजन के विचार के लिए एक बेहतरीन उर्वरक सिद्ध हुआ।डॉ अम्बेडकर लखनऊ पैक्ट के बेहद खिलाफ थे और वह कांग्रेस से देश के वंचित वर्ग के लिए तवज्जो चाहते थे।वह गांधी जी के अछूतोद्धार कार्यक्रम से भी नाइत्तेफ़ाकी रखते थे क्योंकि यह अपर्याप्त थे।वंचित वर्ग की लड़ाई लड़ने के लिए डॉ अम्बेडकर अपने बलबूते ही गोलमेज सम्मेलन में भाग लेने लन्दन तक गए।आज़ादी के समय तक अम्बेडकर "महाभीम" के रूप में सामने आ चुके थे।संविधान की प्रारूप समिति के अध्यक्ष के रूप में उनकी नियुक्ति नेहरू की उदारता नहीं वरन मजबूरी थी क्योंकि उनके कद का विशेषज्ञ उस समय कोई अन्य था ही नहीं।डॉ अम्बेडकर से नेहरू इतने भयभीत थे कि उन्हें हरहाल में चुनाव में हराने के लिए उनके खिलाफ चुनाव प्रचार में भी गए।
कथित समाजवाद और धर्मनिरपेक्षता के वह बेहद खिलाफ थे और इसीलिए संविधान की प्रस्तावना में उन्होंने "धर्मनिरपेक्ष एवम् समाजवादी" शब्द को शामिल नहीं होने दिया।हिन्दू धर्म की शोषणकारी परम्पराओं के चलते उन्होंने धर्मपरिवर्तन की घोषणा कर दी।कई मौलाना उनसे मिलने पहुंचे ताकि उन्हें मुस्लिम बनाया जा सके।लेकिन उन्होंने साफ़ मना कर दिया।क्योंकि उनका मानना था कि"इस्लाम अपनाने के बाद मेरी आस्था देश से कटकर अरब देशों के साथ जुड़ जायेगी।" और उन्होंने इसी कारण आखिरकार बौद्ध धर्म अपनाने का फैसला किया जो कि एक स्वदेशी पंथ था।
(जारी)
गुरुवार, 14 अप्रैल 2016
भीवा रामजी अम्बवाड़ेकर
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