मंगलवार, 14 नवंबर 2017

भारत में अहले हदीश

भारतीय उपमहाद्वीप मे अहले हदीश आंदोलन:
यह मुस्लिम विचारधारा उत्तर भारत मे 19 वीं सदी के मध्य में उत्पन्न हुई। अहले हदीश कुरान,सुन्ना और हदीश को धार्मिक मामलों मे एकमात्र श्रौत मानता है।प्रारम्भिक इस्लाम के बाद के सभी परिवर्तनों को यह गैर-इस्लामी मानता है। वे तक़लीद (विधिक मिसालों) और इज्तिहाद का विरोध करते हैं।
इस आंदोलन के समर्थक स्वयं को सलाफ़ी कहते हैं।जबकि बाकी लोग इन्हे वहाबी कहते हैं।हालिया वर्षों मे पाकिस्तान,बांगलादेश, अफगानिस्तान और भारत में इनका प्रसार हुआ है।  
दिल्ली के सैयद नज़ीर हुसैन और भोपाल के सिद्दिक हसन खान इस आंदोलन के संस्थापक माने जाते हैं।अहले हदीश विश्वास एवं परम्पराओं के अनुसार लोक-इस्लाम एवं सूफिवाद एक अभिशाप है।  
अहले हदीश के सूफिवाद के प्रति इस दृष्टिकोण के कारण बार इसका बरेलवियों के साथ संघर्ष प्रारम्भ हो गया। इसने बरेलवी और देवबंदी को विरोधी समूहों मे विभाजित कर दिया। अहले-हदीश समर्थक खुदकों ज़ाहिरी मधाब के रूप मे पहचानते हैं। अहले हदीश प्रेरणा व पैसा दोनों ही सऊदी अरब से प्राप्त करता है।
मिश्र मे 5-6 करोड सलाफ़ी है।ये भिन्न भिन्न नामों से जाने जाते हैं। वर्ष 2015 से वहाँ की सरकार ने सलाफ़ियत से जुड़ी सभी पुस्तकें प्रतिबंधित की हुई हैं।
वैश्विक स्तर पर लगभग 50 लाख की संख्या में सलाफ़ी हैं। भारत मे लगभग 20 से 30 लाख सलाफ़ी हैं।मिश्र में लगभग 6 लाख,27.5 लाख बांगलादेश, सुडान मे 1.6 लाख सलाफ़ी हैं।गुप्तचर एजेंसियों के अनुसार सलाफ़ी आंदोलन दुनिया मे सबसे तेजी से बढ्ने वाला आंदोलन है।


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